भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) के 40 साल बाद भी दुनिया की सबसे भयानक औद्योगिक आपदा के तहत बचा 337 मीट्रिक टन विषाक्त कचरा यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के बंद शेड में पड़ा है। केंद्र सरकार द्वारा मध्यप्रदेश सरकार को इस कचरे के निपटारे के लिए ₹126 करोड़ दिए गए थे, लेकिन अब तक इसका निपटारा शुरू नहीं हुआ है। यह जानकारी सामाजिक कार्यकर्ताओं ने दी।
2-3 दिसंबर, 1984 की रात में यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से घातक मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस का रिसाव हुआ था, जिससे 5,479 लोगों की जान गई और पांच लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए।
इसके अलावा, फैक्ट्री के आसपास 1.1 मिलियन टन दूषित मिट्टी पड़ी हुई है, जिससे जल स्रोत भी प्रदूषित हो गए हैं। यह जानकारी भोपाल गैस पीड़ित संघर्ष सहयोग समिति के सह-संयोजक एनडी जयप्रकाश ने दी। उन्होंने बताया कि इस मामले में दायर याचिका पर मंगलवार को सुनवाई होगी।
अदालत की नाराज़गी
इस साल 11 सितंबर को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 2004 में दायर एक याचिका की सुनवाई के दौरान सरकार की ढिलाई पर नाराजगी जताई। कोर्ट ने एमपी पॉल्यूशन बोर्ड के चेयरमैन को मामले की निगरानी करने के निर्देश दिए। अदालत ने यह भी बताया कि मार्च में केंद्र द्वारा ₹126 करोड़ देने के बावजूद कचरे का निपटारा शुरू नहीं हुआ है।
दशकों से लंबित मामला
2005 में, याचिका दायर होने के एक साल बाद, केंद्र और मध्यप्रदेश सरकार ने यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री की सतह से करीब 345 मीट्रिक टन कचरा इकट्ठा किया था। लेकिन यह कुल कचरे का 0.05% से भी कम है, यह जानकारी भोपाल ग्रुप फॉर इनफॉर्मेशन एंड एक्शन की रचना ढींगरा ने दी।
2012 में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि कचरे के कारण फैक्ट्री के आसपास के 22 इलाकों के भूजल में प्रदूषण हुआ है। 2015 में, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने पिथमपुर के एक केंद्र में 10 टन कचरे का परीक्षण के तौर पर निपटारा किया और यही प्रक्रिया अपनाने की सिफारिश की।
हालांकि, मध्य प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि कचरे का निपटारा इंदौर के जल स्रोत को प्रदूषित करेगा। इसी समय, एक जर्मन कंपनी ने ₹54 करोड़ में कचरे के निपटारे का प्रस्ताव दिया, लेकिन वह जनविरोध के कारण इसे वापस ले लिया।
नए निपटान योजना पर सवाल
2022 में, मध्यप्रदेश सरकार ने ₹126 करोड़ की लागत से पिथमपुर में कचरे का निपटारा करने की घोषणा की। एनडी जयप्रकाश ने इस योजना की पारदर्शिता पर सवाल उठाते हुए इसे “संदिग्ध” बताया।
रचना ढींगरा का कहना है कि कचरे का निपटारा एक बंद लूप वाले संयंत्र में किया जाना चाहिए, जिसमें जहरीले रसायनों की निगरानी हो सके। साथ ही, डाउ केमिकल्स से इसे अमेरिका ले जाने की मांग की जानी चाहिए।