नई दिल्ली: दुनियाभर में रेबीज़ का ख़तरा बढ़ता जा रहा है। हर साल रेबीज़ से क़रीब 60 हज़ार लोगों की जान जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक़ इनमें से 99 फ़ीसद मामले कुत्ते के काटने और खरोंच के हैं। रेबीज़ से बचाव के लिए एक वैक्सीन है, जिसे कुत्ते के काटने के बाद लिया जाता है। हालांकि, जब कुत्ता किसी व्यक्ति के चेहरे या किसी नर्व के नज़दीक काटता है तो ये वैक्सीन हमेशा कारगर साबित नहीं होती।
जुलाई में तमिलनाडु के अरक्कोणम में चार साल के निर्मल पर उनके घर के बाहर खेलते समय एक आवारा कुत्ते ने हमला कर दिया। जब कुत्ते ने निर्मल के मुंह पर हमला किया, उससे थोड़ी देर पहले ही निर्मल के पिता घर के अंदर गए थे। निर्मल के पिता बालाजी के अनुसार, “मैं उसी वक्त घर के अंदर पानी लेने गया था। जब मैं वापस आया तो उसके चेहरे पर चोट लगी थी।” इसके बाद परिवार उन्हें लेकर अस्पताल गया, जहां उन्हें 15 दिनों तक कड़ी देखरेख में रखा गया।
इसके बाद हालत स्थिर हो गई और उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया। लेकिन, घर आने के कुछ दिनों के बाद निर्मल में रेबीज़ के लक्षण दिखने लगे। उनका परिवार उन्हें लेकर फिर अस्पताल गया, जहां पता चला कि वायरस की वजह से तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) में इनफेक्शन हो गया है। दो दिनों के बाद निर्मल की मौत हो गई।
कभी-कभी बच्चे अपने घर में ये बताने से डरते हैं कि उन्हें कुत्ते ने काटा है. जिसकी वजह से उन्हें रेबीज़ की वैक्सीन लगाने में बहुत देर हो जाती है। साल 1994 से 2015 के बीच मुंबई में करीब 13 लाख लोगों को कुत्ते ने काटा और 434 लोगों की रेबीज़ से मौत हुई है।
इंटरनेशनल कंपेनियन एनिमल मैनेजमेंट कोलिज़न (आईसीएएम) के मुताबिक़ आवारा कुत्तों से होने वाले अन्य ख़तरों में अव्यवस्थित आवारा कुत्तों की आबादी, सड़क हादसे और मवेशियों के लिए ख़तरा शामिल हैं। इसके अलावा लोगों को सड़क पर पैदल चलने से रोका जा रहा है।