Om Birla – Ekolkata24: Latest Hindi News Updates from Kolkata – Breaking Stories and More https://ekolkata24.com Stay updated with Ekolkata24 for the latest Hindi news, headlines, and Khabar from Kolkata, West Bengal, India, and the world. Trusted source for comprehensive updates Wed, 26 Jun 2024 07:41:29 +0000 en-US hourly 1 https://ekolkata24.com/wp-content/uploads/2024/03/cropped-ekolkata24-32x32.png Om Birla – Ekolkata24: Latest Hindi News Updates from Kolkata – Breaking Stories and More https://ekolkata24.com 32 32 ओम बिरला दूसरी बार बने लोकसभा स्पीकर https://ekolkata24.com/uncategorized/om-birla-became-lok-sabha-speaker-for-the-second-time Wed, 26 Jun 2024 07:41:29 +0000 https://ekolkata24.com/?p=48575 नई दिल्ली:18वीं लोकसभा के स्पीकर पद के लिए एनडीए ने ओम बिरला को उम्मीदवार बनाया है। उनका सामना कांग्रेस के के सुरेश से था। ओम बिरला बीजेपी के सीनियर नेता है और 17वीं लोकसभा में भी स्पीकर का पद संभाल चुके हैं। उस समय वह निर्विरोध चुने गए थे। एनडीए ने एक बार फिर से उनको उम्मीदवार बनाया है। वह राजस्थान की कोटा बूंदी सीट से तीसरी बार के सांसद हैं। अगर ओम बिरला लोकसभा स्पीकर का चुनाव जीत जाते हैं तो वह इतिहास बना देंगे। क्यों कि देश के इतिहास में अब तक कोई भी सांसद लगातार दो कार्यकाल में स्पीकर नहीं रहा है। लेकिन ओम बिरला का नाम एनडीए ने फिर से आगे किया है। हालांकि लोकसभा के संख्या बल के हिसाब से उनकी जीत लगभग तय मानी जा रही है।

ओम बिरला का ताल्लुक राजस्थान के कोटा से है। उन्होंने कोटा बूंदी लोकसभा सीट से तीसरी बार लोकसभा चुनाव जीता है। बीजेपी से बागी होकर कांग्रेस में शामिल हुए पूर्व विधायक प्रह्लाद गुंजन को 41974 वोटों से शिकस्त देकर वह लगातार तीसरी बार संसद पहुंचे हैं। RSS का गढ़ माने जाने वाले कोटा के चुनावी मैदान में बीजेपी ने लोकसभा स्पीकर ओम बिरला पर फिर से भरोसा जताया था। जो उन्होंने भी टूटने नहीं दिया। वह कोटा के इतिहास में वैद्य दाऊदयाल जोशी जी के बाद लगातार तीन बार विधानसभा और तीन बार लोकसभा चुनाव जीतने वाले पहले नेता हैं।

ओम बिरला साल 2003 अब तक कोई भी चुनाव हारे नहीं हैं। साल 2003 में उन्होंने कोटा से पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। साल 2008 में उन्होंने कोटा दक्षिण सीट से कांग्रेस नेता शांति धारीवाल को शिकस्त दी थी। साल 2013 में उन्होंने तीसरी बार कोटा दक्षिण सीट से चुनाव जीता था। हालांकि लोकसभा चुनाव उन्होंने पहली बार साल 2014 में लड़ा और विजयी भी हुए। तब से लेकर अब तक यानी कि 2019 और 2024 में उन्होंने जीत का ही स्वाद चखा है। साल 2019 में बीजेपी ने जब उनको स्पीकर बनाया, तो हर कोई हैरान रह गया। लंबा संसदीय अनुभव न होने के बाद भी ओम बिरला ने जिस तरह से सदन को चलाया, वह तारीफ-ए-काबिल रहा।

ओम बिरला का निजी जीवन
ओम बिरला का जन्म 23 नवंबर 1962 को राजस्थान के कोटा शहर में हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीकृष्ण बिरला और माता का नाम श्रीमती शकुन्तला देवी था। 11 मार्च 1991 को उन्होंने डॉक्टर अमिता बिरला से शादी की। आकांक्षा और अंजलि बिरला नाम की उनकी दो बेटियां हैं। ओम बिरला की पढ़ाई-लिखाई की बात करें तो उन्होंने साल 1986 में महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय से एम.कॉम. की डिग्री ली थी।

19 जून 2019 को वह सर्वसम्मति से 17वीं लोकसभा के अध्यक्ष निर्वाचित किए गए.साल 2019 में वह 17वीं लोकसभा में कोटा बूंदी लोकसभा क्षेत्र से सासंद चुने गए। साल 2014 में 16वीं लोकसभा में भी वह कोटा-बूंदी लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए। साल 2003, 2008 और 2013 में राजस्थान विधानसभा में वह कोटा और कोटा दक्षिण विधानसभा क्षेत्र से लगातार तीन बार विधायक चुने गए। साल 2009-10 में वह राजकीय उपक्रम समिति के सदस्य और सामान्य प्रयोजनों संबधी समिति के सदस्य रहे। 1997-2003 तक वह भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे. 1993-1997 तक वह भारतीय जनता युवा मोर्चा राजस्थान प्रदेश के अध्यक्ष रहे। 1987-1991 तक वह भारतीय जनता युवा मोर्चा कोटा जिलाध्यक्ष रहे। 2002-2004 तक वह राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ लि. नई दिल्ली के उपाध्यक्ष रहे.।

1992-2004 तक वह राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ लि. नई दिल्ली के डायरेक्टर रहे। 1992-1995 तक वह राजस्थान राज्य सहकारी उपभोक्ता संघ लि, जयपुर के अध्यक्ष रहे। 1987-1995 तक वह कोटा सहकारी उपभोक्ता होलसेल भण्डार लि., कोटा के अध्यक्ष रहे. 1978-1979 तक वह राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, गुमानपुरा, कोटा के छात्र संघ अध्यक्ष रहे।

ओम बिरला ऐसे पहले लोकसभा स्पीकर हैं, जिनके नाम पर नए और पुराने दोनों संसद भवनों में काम करने का रिकॉर्ड है। 17वीं लोकसभा में उनका कार्यकाल काफी चर्चा में रहा। क्योंकि उनके अध्यक्ष रहते ही टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा को संसद से निष्कासित किया गया। साथ ही बड़ी तादात में सांसदों को भी सस्पेंड किया गया था।

उनके ही कार्यकाल में अनुच्छेद 370 खत्म होने, नागरिकता संशोधन कानून (CAA) लागू होने, तीन आपराधिक कानून लागू होने समेत अनेक अहम विधायी कामकाज हुए। ओम बिरला ऐसे इकलौते लोकसभा अध्यक्ष रहे, जिनके कार्यकाल में कोई भी लोकसभा उपाध्यक्ष नहीं चुना गया।

कोरोना महामारी के बीच आयोजित 17वीं लोकसभा के चौथे सत्र की उत्पादकता 167% रही, जो लोकसभा के इतिहास में सबसे ज्यादा है।
संसद के संचालन में वित्तीय अनुशासन को प्रोत्साहित कर 801 करोड़ की बचत की गई।
17वीं लोक सभा के दौरान 222 विधेयक कानून बने, जो पिछली तीन लोकसभा में सबसे ज्यादा है।
17वीं लोकसभा के दौरान विधेयकों पर कुल 440.54 घंटे चर्चा हुई, जो पिछली चार लोकसभा में सबसे ज्यादा है।
17वीं लोक सभा के दौरान विभिन्न विधेयकों पर कुल 2910 सदस्यों ने चर्चा की, जो पिछली चार लोकसभा में सबसे ज्यादा है।
ज्ञान के समृद्ध कोष संसद की लाइब्रेरी को 17 अगस्त 2022 से आमजन के लिए खोल दिया गया।

ओम बिरला ने कोटा शहर में IIT की स्थापना के लिए बड़े स्तर पर जनआंदोलन किया। बूंदी जिले को चंबल नदी का पानी उपलब्ध कराने के लिए भी उन्होंने आंदोलन किया। राजस्थान एटोमिक पावर प्लांट रावतभाटा में स्थानीय लोगों को रोजगार और क्षेत्र के विकास के लिए बड़े स्तर पर जन आंदोलन किया।

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देश में दूसरी बार लोकसभा अध्यक्ष के लिए चुनाव https://ekolkata24.com/uncategorized/election-for-the-lok-sabha-speaker-for-the-second-time-in-the-country Tue, 25 Jun 2024 08:41:09 +0000 https://ekolkata24.com/?p=48550 नई दिल्ली :  18वीं लोकसभा के स्पीकर के चयन को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच आम सहमति नहीं बन पाई। अब स्पीकर का चयन चुनाव के माध्यम से होगा। देश के इतिहास में ऐसा दूसरी बार होने जा रहा है। लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए सरकार और विपक्ष के बीच सहमति नहीं बन पाई है। इसके बाद भाजपा सांसद ओम बिरला सरकार और कांग्रेस सांसद कोडिकुनिल सुरेश विपक्ष के उम्मीदवार होंगे। रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) के नेता एनके प्रेमचंद्रन ने बताया कि सुरेश ने नामांकन दाखिल किया है। पिछली लोकसभा में निचले सदन के अध्यक्ष रहे बिरला ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर नामांकन दाखिल किया है।

कांग्रेस के संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल और द्रमुक नेता टीआर बालू लोकसभा अध्यक्ष के पद के लिए राजग उम्मीदवार का समर्थन करने से इनकार करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के कार्यालय से बाहर आ गए। वेणुगोपाल ने आरोप लगाया कि सरकार ने उपाध्यक्ष पद विपक्ष को देने की प्रतिबद्धता नहीं जताई। बता दें कि पिछली बार ओम बिरला ही लोकसभा के स्पीकर थे, जबकि के. सुरेश आठ बार के सांसद रह चुके हैं। केवल स्पीकर पद को लेकर ही नहीं इससे पहले प्रोटेम स्पीकर के पद को लेकर भी सरकार और विपक्ष के बीच विवाद देखा गया था। जब सरकार ने भर्तृहरि महताब को प्रोटेम स्पीकर बना दिया था। विपक्ष का आरोप था कि सरकार ने के. सुरेश की वरिष्ठता को नजरअंदाज किया है।

इसी के साथ देश में लंबे समय से चली आ रही परंपरा टूट गई। दरअसल, पहले लोकसभा सत्र को छोड़ दें तो अब तक निचले सदन में अध्यक्ष सर्वसम्मति से ही चुना जाता रहा है। पिछली बार भी ऐसा ही हुआ था। हालांकि, इस बार दोनों ओर से उम्मीदवारों के नामांकन के साथ ही सर्वसम्मति से इस पद पर होने वाली निर्वाचन की बीते 16 लोकसभा से जारी परंपरा टूट जाएगी।

बता दें कि 15 मई 1952 को पहली लोकसभा के अध्यक्ष का चुनाव हुआ था। इस चुनाव में सत्ता पक्ष के जीवी मावलंकर उमीदवार थे। उनका मुकाबला शंकर शांतराम मोरे से हुआ था। मावलंकर के पक्ष में 394 वोट, जबकि 55 वोट उनके खिलाफ पड़े थे। इस तरह मावलंकर आजादी से पहले देश के पहले लोकसभा स्पीकर बने थे।

आइए यहां जानते हैं कि लोकसभा स्पीकर का चुनाव कैसे होता है? आखिर क्यों महत्वपूर्ण होता है स्पीकर का पद? इस पद की भूमिका क्या है और अब तक किस-किसने स्पीकर का पोस्ट संभाला? अब तक किस-किस पार्टी के सदस्य लोकसभा अध्यक्ष बने हैं?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 93 में लोकसभा के अध्यक्ष के चुनाव का जिक्र किया गया है। अनुच्छेद 93 के अनुसार, लोकसभा को अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की भूमिका के लिए दो सदस्यों को चुनने का अधिकार है, जब भी ये पद खाली होते हैं। लोकसभा अध्यक्ष के पद का हमारे संसदीय लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान है। अध्यक्ष उस सदन की गरिमा और शक्ति का प्रतीक है जिसकी वह अध्यक्षता करता है। पद और वरीयता के संबंध में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, अपने-अपने राज्यों के राज्यपाल और पूर्व राष्ट्रपति, उप प्रधानमंत्री के बाद छठे स्थान पर भारत के मुख्य न्यायाधीश के साथ लोकसभा अध्यक्ष का पद आता है।

एक बार जब लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव की तिथि राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित हो जाती है और लोकसभा सचिवालय द्वारा अधिसूचित हो जाती है, तो कोई भी सदस्य महासचिव को संबोधित करते हुए लिखित रूप में प्रस्ताव दे सकता है कि किसी अन्य सदस्य को सदन का अध्यक्ष चुना जाए।

लोकसभा में अध्यक्ष का चुनाव इसके सदस्यों में से सभा में मौजूद और मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत द्वारा किया जाता है। अध्यक्ष के चुनाव के लिए कोई विशेष योग्यता निर्धारित नहीं की गई है और संविधान में मात्र यह अपेक्षित है कि वह सभा का सदस्य होना चाहिए। सामान्यतः सत्तारूढ़ दल के सदस्य को ही अध्यक्ष निर्वाचित किया जाता है। उम्मीदवार के संबंध में एक बार निर्णय ले लिए जाने पर आमतौर पर प्रधानमंत्री और संसदीय कार्य मंत्री द्वारा उसके नाम का प्रस्ताव किया जाता है।

प्रस्तुत किए गए प्रस्तावों का आवश्यकता के अनुसार, सभा में मत विभाजन द्वारा फैसला किया जाता है। यदि कोई प्रस्ताव स्वीकृत हो जाता है तो पीठासीन अधिकारी घोषणा करेगा कि प्रस्तावित सदस्य को सभा का अध्यक्ष चुन लिया गया है। नतीजा घोषित किए जाने के बाद नवनिर्वाचित अध्यक्ष को प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता द्वारा अध्यक्ष आसन तक ले जाया जाता है। इसके बाद सभा में सभी राजनैतिक दलों और समूहों के नेताओं द्वारा अध्यक्ष को बधाई दी जाती है और उसके जवाब में वह सभा में धन्यवाद भाषण देता है और इसके बाद नया अध्यक्ष अपना कार्यभार ग्रहण करता है।

भारत में लोकसभा अध्यक्ष सभा का संवैधानिक और औपचारिक प्रमुख होता है। वह सभा का प्रमुख प्रवक्ता होता है। लोकसभा की कार्यवाही के संचालन का उत्तरदायित्व अध्यक्ष पर ही होता है। लोकसभा अध्यक्ष को संसद के अपने कर्त्तव्यों के निर्वहन में आने वाली वास्तविक आवश्यकताओं और समस्याओं का समाधान करना पड़ता है। सदन का संचालन, प्रश्न और अभिलेख, ध्वनि मत, विभाजन, अविश्वास प्रस्ताव, मतदान और सदस्यों की अयोग्यता जैसे अहम मामले अध्यक्ष की शक्तियों में आते हैं।

गणेश वासुदेव मावलंकर लोकसभा के पहले अध्यक्ष थे। कांग्रेस के लोकसभा सांसद मावलंकर का कार्यकाल मई 1952 से फरवरी 1956 तक था। एम. अनन्तशयनम अय्यंगार देश के दूसरे लोकसभा अध्यक्ष बने। उन्होंने लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष जी.वी. मावलंकर के आकस्मिक निधन के बाद अध्यक्ष पद का दायित्व ग्रहण किया था। कांग्रेस पार्टी के सांसद अय्यंगार के दो कार्यकाल रहे, जिसमें पहला मार्च 1956 से मई 1957 तक और दूसरा मई 1957 से अप्रैल 1962 तक रहा।

सरदार हुकम सिंह अप्रैल 1962 से मार्च 1967 के बीच लोकसभा के तीसरे स्पीकर थे। वर्ष 1962 के आम चुनावों में हुकम सिंह को कांग्रेस के टिकट पर पटियाला सीट से चुना गया था। डॉ. नीलम संजीव रेड्डी ने लोकसभा के चौथे अध्यक्ष के रूप में काम किया। रेड्डी के भी दो कार्यकाल रहे, जिसमें पहला मार्च 1967 से जुलाई 1669 तक और दूसरा मार्च 1977 से जुलाई 1977 तक रहा। रेड्डी चौथी लोकसभा के लिए आंध्र प्रदेश के हिन्दुपुर सीट से निर्वाचित हुए थे।

नीलम संजीव रेड्डी ऐसे एकमात्र अध्यक्ष हैं जिन्होंने अध्यक्ष पद का कार्यभार सम्भालने के बाद अपने दल से औपचारिक रूप से त्यागपत्र दे दिया था। अध्यक्ष पद पर चुने जाने के तुरन्त बाद उन्होंने कांग्रेस की अपनी 34 वर्ष पुरानी सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। उनका यह मानना था कि अध्यक्ष का संबंध सम्पूर्ण सभा से होता है, वह सभी सदस्यों का प्रतिनिधित्व करता है और इसलिए उसे किसी दल से जुड़ा नहीं होना चाहिए या यों कहें कि उसका संबंध सभी दलों से होना चाहिए। वह ऐसे एकमात्र लोकसभा अध्यक्ष भी थे जिन्हें सर्वसम्मति से राष्ट्रपति चुने जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

नीलम संजीवा रेड्डी द्वारा राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए लोकसभा अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दिए जाने पर डॉ. गुरदयाल सिंह ढिल्लों को अगस्त 1969 में सर्वसम्मति से लोकसभा अध्यक्ष चुना गया। जब ढिल्लों इस पद के लिए निर्वाचित हुए तो वे उस समय तक लोकसभा के जितने अध्यक्ष हुए थे उनमें से सबसे कम उम्र के अध्यक्ष थे। कांग्रेस नेता ढिल्लों ने दो बार लोकसभा अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। पहला कार्यकाल अगस्त 1969 से मार्च 1971 तक और दूसरा मार्च 1971 से दिसंबर 1975 तक रहा।

ढिल्लों द्वारा अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दिए जाने के बाद रिक्त हुए पद पर जनवरी 1976 में बली राम भगत को पांचवीं लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया। कांग्रेस से आने वाले नेता का कार्यकाल मार्च 1977 को समाप्त हुआ था।

छठी लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में कावदूर सदानन्द हेगड़े का चुनाव किया गया। केएस हेगड़े का कार्यकाल जुलाई 1977 से जनवरी 1980 तक रहा। यह भी दिलचस्प था कि हेगड़े 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर पहली बार निर्वाचित हुए और अपने प्रथम कार्यकाल के दौरान ही उन्हें लोकसभा अध्यक्ष का पद मिल गया।

डॉ. बलराम जाखड़ ने सातवीं लोकसभा के लिए अपने सर्वप्रथम निर्वाचन के तुरंत बाद अध्यक्ष पद हासिल किया। उन्हें लगातार दो बार लोकसभा अध्यक्ष चुना गया। कांग्रेस से आने वाले जाखड़ का पहला कार्यकाल जनवरी 1980 से जनवरी 1985 तक और जनवरी 1985 से दिसंबर 1989 तक रहा।

ओडिशा से आने वाले जनता दल के नेता रवि राय को दिसम्बर 1989 में नौवीं लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया। हालांकि, रवि राय अध्यक्ष पद पर केवल करीब 15 महीने ही रहे। कांग्रेस नेता शिवराज विश्वनाथ पाटील 10वीं लोक सभा के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे। पाटील का कार्यकाल जुलाई 1991 से मई 1996 तक रहा।

वर्षों की भारतीय संसदीय परंपरा से हटकर 11वीं लोकसभा ने विपक्ष के एक सदस्य पूर्णो अगितोक संगमा को सर्वसम्मति से अध्यक्ष पद के लिए निर्वाचित किया। उस वक्त भारत के 50 वर्षों के संसदीय इतिहास में वह ऐसे पहले सदस्य थे जिन्होंने विपक्ष में रहते हुए अध्यक्ष का पद संभाला। उस वक्त कांग्रेस नेता संगमा का स्पीकर के रूप में पी.ए. संगमा का कार्यकाल मार्च 1996 से मार्च 1998 तक था।

गन्ती मोहन चन्द्र बालायोगी को 12वीं लोक सभा का अध्यक्ष निर्वाचित होने और सर्वसम्मति से 13वीं लोक सभा का अध्यक्ष पुनः निर्वाचित होने का गौरव हासिल है। तेलुगूदेशम पार्टी सांसद बालायोगी ने मार्च 1998 में देश के राजनैतिक इतिहास के अत्यंत नाजुक दौर में लोकसभा अध्यक्ष के महत्वपूर्ण पद के लिए निर्वाचित हुए। टीडीपी उस समय गठबंधन सरकार का बाहर से समर्थन कर रही थी। उस समय किसी भी पार्टी के पास स्पष्ट बहुमत नहीं था। बालायोगी इस पद पर आसीन होने वाले आज तक के सबसे कम आयु के व्यक्ति थे।

एक हेलीकाप्टर दुर्घटना में तत्कालीन लोक सभा अध्यक्ष जीएमसी बालायोगी की दुखद मृत्यु के बाद मनोहर जोशी मई 2002 में लोकसभा अध्यक्ष बने थे। शिवसेना से ताल्लुक रखने वाले जोशी जून 2004 तक पद पर बने रहे।

जून 2004 में 14वीं लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में सोमनाथ चटर्जी का सर्वसम्मति से निर्वाचन हुआ। यह पहली बार था जब सामयिक अध्यक्ष (प्रोटेम स्पीकर) का लोकसभा अध्यक्ष के रूप में निर्वाचन किया गया था। सोमनाथ चटर्जी माकपा से जुड़े थे।

उप-प्रधानमंत्री स्वर्गीय बाबू जगजीवन राम की पुत्री मीरा कुमार 2009 से 2014 तक लोकसभा की 15वीं अध्यक्ष रहीं। इस पद पर आसीन होने वाली वे पहली महिला थीं। मीरा कुमार कांग्रेस की सदस्य हैं। भाजपा की सुमित्रा महाजन 16वीं लोकसभा की अध्यक्ष थीं। वे इस पद पर आसीन होने वाली भारत की दूसरी महिला हैं। राजस्थान के कोटा से भाजपा के सांसद ओम बिड़ला 17वीं लोकसभा के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे।

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পাক সেনেটের প্রধানকে আমন্ত্রণ জানিয়ে বিতর্কে জড়ালেন লোকসভার অধ্যক্ষ ওম বিড়লা https://ekolkata24.com/uncategorized/controversial-senate-chairman-of-pakistan-gets-lok-sabha-speaker-om-birlas-invite Tue, 12 Oct 2021 14:46:30 +0000 https://www.ekolkata24.com/?p=7462 নিউজ ডেস্ক, নয়াদিল্লি: উৎসবের মরসুমে নতুন এক বিতর্কে জড়ালেন লোকসভার (Lok Sabha) স্পিকার ওম বিড়লা (Om Birla)। সংসদের পাবলিক অ্যাকাউন্টস কমিটি বা পিএসির শতবর্ষ পূর্তি অনুষ্ঠানে ওম বিড়লা আমন্ত্রণ জানিয়েছেন পাকিস্তানের সেনেটের প্রধানকে। 

পিএসির ১০০ বছর পূর্তি উপলক্ষে ডিসেম্বর মাসে এক বিশেষ অনুষ্ঠানের আয়োজন করেছে সরকার। বিশেষ সূত্রের খবর, ওই অনুষ্ঠানে ওম বিড়লা পাকিস্তানের সেনেটের চেয়ারম্যান সাদিক সাঞ্জরানিকে আমন্ত্রণ জানিয়েছেন। ওম বিড়লার এই সিদ্ধান্ত নিয়ে ইতিমধ্যেই রাজনৈতিক মহলে বিতর্ক তৈরি হয়েছে।

লোকসভার স্পিকার যখন পাক প্রতিনিধিকে আমন্ত্রণ জানাচ্ছেন তখন আদানি গোষ্ঠীর তরফে জানানো হল ইরান, পাকিস্তান ও আফগানিস্তান থেকে কোন মালবাহী জাহাজকে আর তাদের বন্দরে পণ্য খালি করতে দেওয়া হবে না। আদানি বন্দর কর্তৃপক্ষ ও বিশেষ অর্থনৈতিক অঞ্চল কর্তৃপক্ষ এক যৌথ নির্দেশিকায় জানিয়েছে, ১৫ নভেম্বর থেকে পাকিস্তান, আফগানিস্তান ও ইরান থেকে আসা কোনও কন্টেনারকে ভারতে খালি করার অনুমতি দেওয়া হবে না।

এমনকী, সেটা তৃতীয় কোনও দেশের পণ্য হলেও এই অনুমতি মিলবে না। এই সিদ্ধান্তে ওই তিন দেশের ব্যবসায়ীদের কপালে চিন্তার ভাঁজ পড়েছে। ইরানি ব্যবসায়ীরা ইতিমধ্যেই ভারত সরকারের কাছে এই সিদ্ধান্তের বিরুদ্ধে আবেদন করার কথা ভাবছেন। ১৬ সেপ্টেম্বর মুম্বইয়ে আদানিদের বন্দরে ধরা পড়েছিল বিপুল পরিমাণ মাদক। যার মূল্য ছিল প্রায় ২০ হাজার কোটি টাকা। তালিবান আফগানিস্তানের ক্ষমতা দখলের পর মাদকপাচার আরও বেড়ে গিয়েছে সে কারণেই আদানি বন্দর কর্তৃপক্ষ এই সিদ্ধান্ত নিয়েছে। তবে এই সিদ্ধান্তে মাথায় হাত পড়েছে রফতানিকারকদের। বিশেষ করে ইরানি রফতানিকারকদের। কারণ তারাই ভারতের সবচেয়ে বেশি পণ্য পাঠিয়ে থাকে।

ভারতের প্রাচীনতম সংসদীয় কমিটিগুলির মধ্যে পিএসি অন্যতম। শুধু তাই নয়, এটি সংসদের গুরুত্বপূর্ণ কমিটিও বটে। আপাতত এই কমিটির চেয়ারম্যান হলেন কংগ্রেস সাংসদ অধীর চৌধুরী। পিএসসির শতবর্ষ পূর্তি উপলক্ষে সংসদ ভবনে এই অনুষ্ঠানের আয়োজন করা হয়েছে। সেখানে একাধিক দেশের প্রতিনিধিদের আমন্ত্রণ জানানো হয়েছে। যার মধ্যে রয়েছেন পাক প্রতিনিধিও। তবে স্পিকার ওম বিড়লার বক্তব্য হল, নেহাতই সৌজন্যতাবশত ওই অনুষ্ঠানে পাক প্রতিনিধিকে আমন্ত্রণ জানানো হয়েছে। পাকিস্তান কমনওয়েলথের অন্যতম সদস্য। এই অনুষ্ঠানে কমনওয়েলথের সদস্যদের আমন্ত্রণ জানানো হয়েছে। সে কারণেই পাক প্রতিনিধিকেও আমন্ত্রণ জানানো হয়েছে।

তবে বসে নেই সরকার বিরোধীরা। তারা পাল্টা বলেছে, পাকিস্তান ভারতের বিরুদ্ধে নিয়মিত ষড়যন্ত্র করে চলেছে। আফগানিস্তানে তালিবানকে ভারতের বিরুদ্ধে উস্কানি দিচ্ছে। তাছাড়া সাদিক সাঞ্জরানির বিরুদ্ধে গণতন্ত্রকে পদদলিত করার অভিযোগ উঠেছে পাকিস্তানেই। তারপরেও কিভাবে তাঁকে আমন্ত্রণ জানানো হলো? এখন দেখার সাদিক এই অনুষ্ঠানে যোগ দেন কিনা! তবে কেন্দ্রের বিজেপি সরকারের কাছ থেকে এ ধরনের আচরণ এর আগেও লক্ষ্য করা গিয়েছে। পাকিস্তান যখন সীমান্তে নিয়মিত জঙ্গিদের অনুপ্রবেশে মদত জোগাচ্ছে সে সময় ভারতের প্রধানমন্ত্রী নরেন্দ্র মোদি হঠাৎই পাকিস্তানে চলে গিয়েছিলেন।

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