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बेलुन धमासिन ग्राम पंचायत के बेरुई समबाय में तृणमूल ने 12 सीटों में से सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। इस चुनाव में सीपीएम और बीजेपी ने भी उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन तृणमूल के सामने वे कोई चुनौती नहीं पेश कर पाए। 784 मतदाताओं के बीच 546 मतदान केंद्रों पर वोटिंग हुई, और परिणाम में तृणमूल ने सभी सीटों पर जीत दर्ज की।
जामग्राम मंडलई ग्राम पंचायत के पैकारा समबाय में भी तृणमूल ने जीत हासिल की। यहां 306 मतदाता थे, और 290 मतदान केंद्रों पर वोटिंग हुई। तृणमूल ने इस चुनाव में पूरी तरह से बहुमत प्राप्त किया।
जाएर द्वारबासिनी ग्राम पंचायत के कमताई समबाय में भी तृणमूल ने 11 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि सीपीएम को सिर्फ एक सीट मिली। यहां कुल 407 मतदाता थे और 280 मतदान केंद्र थे। इस कड़ी प्रतिस्पर्धा के बाद तृणमूल ने समबाय बोर्ड पर अपना कब्जा जमाया।
इस शानदार जीत के बाद तृणमूल कार्यकर्ता उत्साहित होकर अकाल होली मनाने लगे। पाण्डुआ ब्लॉक तृणमूल कांग्रेस के सहायक अध्यक्ष शुभंकर नंदी ने कहा, “यह जीत साम्प्रदायिक सद्भाव और भाईचारे की जीत है। हमारी प्राथमिकता हमेशा किसानों के विकास और ममता दीदी की नीतियों को समर्थन देने की रही है।”
हुगली जिला तृणमूल कांग्रेस के महासचिव संजय घोष ने कहा, “यह जीत ममता बनर्जी की जीत है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हमेशा आम जनता और किसानों के हित में काम किया है, और इस चुनावी जीत का यही परिणाम है। हमें उम्मीद है कि आने वाले समय में भी जनता हमारे साथ रहेगी।”
साथ ही, चुनाव के दौरान कोई अप्रत्याशित घटना न हो, इसके लिए पुलिस बल की बड़ी संख्या में तैनाती की गई थी ताकि चुनाव शांति से संपन्न हो सके।
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कांग्रेस के उम्मीदवार को 14,883 वोट प्राप्त हुए हैं, जबकि बीजेपी के उम्मीदवार को 13,020 वोट मिले हैं। इस तरह से, तृणमूल की बढ़त दोनों ही प्रमुख विपक्षी दलों के मुकाबले काफी मजबूत दिखाई दे रही है। यह परिणाम यह भी साबित करता है कि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का प्रभाव बरकरार है, खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां पार्टी का आधार बहुत मजबूत है।
यह नतीजा केवल तृणमूल के लिए खुशी का कारण नहीं है, बल्कि बीजेपी और कांग्रेस के लिए भी एक चेतावनी है। बीजेपी, जिनके पास केंद्रीय नेताओं का समर्थन था और जिन्होंने बड़े पैमाने पर प्रचार किया, वे तृणमूल से पीछे रह गए हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि बीजेपी का बंगाल में प्रभाव अब पहले जैसा नहीं रहा है। तृणमूल कांग्रेस के साथ-साथ कांग्रेस की स्थिति भी कमजोर होती दिख रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस उपचुनाव में तृणमूल की सफलता केवल कालिगंज तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि यह आगामी विधानसभा चुनावों के संदर्भ में भी एक महत्वपूर्ण संकेत हो सकता है। तृणमूल का यह प्रदर्शन राज्य के आगामी चुनावों में बीजेपी और कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती पेश कर सकता है।
कालिगंज का यह उपचुनाव पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक नया मोड़ ला सकता है। यदि तृणमूल कांग्रेस इस तरह की सफलता को जारी रखती है, तो आगामी चुनावों में उनकी जीत निश्चित लगती है। वर्तमान राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में तृणमूल के लिए यह एक उत्साहजनक स्थिति है, जबकि बीजेपी और कांग्रेस को अब भविष्य में अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता हो सकती है।
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सीपीआईएम की अखिल भारतीय किसान सभा के नेतृत्व में स्थानीय कुछ भूमिहीन परिवारों के सदस्यों ने जुलूस निकालकर इस जमीन पर कब्जा किया। सीपीआईएम का दावा है कि वामपंथी शासनकाल में इस 14 एकड़ जमीन को सैकड़ों भूमिहीन परिवारों के बीच पट्टा के रूप में बांटा गया था। लेकिन पिछले तीन वर्षों से कुछ स्थानीय लोग, सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के समर्थन से, इस जमीन पर अवैध रूप से कब्जा कर चुके हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने गलत तरीके से जमीन का रिकॉर्ड भी बदल लिया। यहां तक कि इस जमीन का कुछ हिस्सा विभिन्न संगठनों को बेच भी दिया गया।
लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अदालत के निर्देश पर यह जमीन फिर से सरकार के खातों में दर्ज हो चुकी है। सीपीआईएम का कहना है कि यह जमीन मूल रूप से भूमिहीन आदिवासी परिवारों के लिए आवंटित की गई थी। इसलिए, उन्होंने आदिवासियों के साथ मिलकर इस जमीन पर फिर से कब्जा किया। सीपीआईएम के स्थानीय नेता अमित मंडल ने कहा, “यह जमीन भूमिहीनों का अधिकार है। हमने केवल उनका हक वापस दिलाया है। सत्तारूढ़ दल के समर्थन से जमीन हड़पने की इस प्रवृत्ति को हम और बर्दाश्त नहीं करेंगे।” उन्होंने आगे कहा कि यह केवल शुरुआत है। भूमिहीनों के अधिकारों की रक्षा के लिए वे और आंदोलन चलाएंगे।
स्थानीय आदिवासी परिवार इस घटना से उत्साहित हैं। काशीपुर के निवासी रामू मुर्मू ने कहा, “यह जमीन हमारे पूर्वजों के समय से हमारी थी। लेकिन कुछ लोगों ने जबरन इसे हड़प लिया था। आज हमें हमारा हक वापस मिला है।” उन्होंने सीपीआईएम के प्रति आभार व्यक्त किया और कहा कि वे इस जमीन पर फिर से खेती शुरू करना चाहते हैं।
दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस ने इस घटना की कड़ी निंदा की है। उनका दावा है कि यह सरकारी जमीन है और अभी भी सरकार के अधीन है। तृणमूल के स्थानीय नेता सुजीत घोष ने कहा, “सरकार नियमित रूप से भूमिहीनों को पट्टा बांट रही है। सीपीआईएम का इस मामले में क्या स्वार्थ है, यह समझ से परे है। दरअसल, चुनाव से पहले वे जमीन पर पकड़ बनाने की कोशिश कर रहे हैं।” उन्होंने आगे आरोप लगाया कि सीपीआईएम इस तरह की घटनाओं के जरिए क्षेत्र में अशांति फैलाना चाहता है।
इस घटना से क्षेत्र में तनाव फैल गया है। स्थानीय प्रशासन ने कहा है कि वे स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए तत्पर हैं। भातार थाने के ओसी अजय सेन ने कहा, “हम स्थिति पर नजर रख रहे हैं। किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए हम सतर्क हैं।” उन्होंने आगे बताया कि जमीन के मालिकाना हक को लेकर विवाद को अदालत के निर्देशों के अनुसार सुलझाया जाएगा।
यह घटना पूर्वी बर्दवान में राजनीतिक टकराव को नया आयाम दे रही है। एक ओर सीपीआईएम अपने पुराने गढ़ को पुनः स्थापित करने के लिए आंदोलन तेज कर रहा है, वहीं तृणमूल इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई के रूप में देख रहा है। स्थानीय निवासी अब इस विवाद के परिणाम का इंतजार कर रहे हैं।
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यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं था, बल्कि बंगाल की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान का अहम हिस्सा था। लेकिन अब प्रशासन ने इस ऐतिहासिक मेले को बंद करने का आदेश दिया है, जिससे स्थानीय लोगों में जबरदस्त आक्रोश फैल गया है।
स्थानीय निवासियों का आरोप है कि यह कोई साधारण फैसला नहीं, बल्कि सुनियोजित षड्यंत्र है। उनका कहना है कि जमीन माफिया, सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के कुछ स्थानीय नेता और किराए के गुंडे मिलकर यह आयोजन जबरन रुकवा रहे हैं।
सबसे गंभीर आरोप यह है कि एक प्रभावशाली नेता, जो तृणमूल कांग्रेस से जुड़े हैं, उन्होंने अपने राजनीतिक और प्रशासनिक प्रभाव का इस्तेमाल कर BLRO कार्यालय से देवस्थान की जमीन को अपने नाम पर दर्ज करवा लिया।
ग्रामीणों का कहना है कि यदि एक ऐतिहासिक धार्मिक स्थल की जमीन सरकार के रिकॉर्ड में बदल दी जा सकती है, तो यह एक बहुत खतरनाक संकेत है। यह न सिर्फ धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है, बल्कि बंगाल की संस्कृति को मिटाने की साजिश है।
गांव के एक बुजुर्ग, गोपाल ठाकुर ने कहा: “यह कोई सामान्य मेला नहीं है। यह हमारी पहचान है। अगर इसे मिटा दिया गया, तो आने वाली पीढ़ियां क्या जानेंगी हमारी विरासत के बारे में?”
प्रशासन का कहना है कि जमीन को लेकर विवाद चल रहा है और जब तक स्थिति स्पष्ट नहीं होती, तब तक मेले को स्थगित किया गया है। लेकिन लोगों का कहना है कि यह सिर्फ बहाना है और असली मकसद धार्मिक स्थल पर कब्जा करना है।
विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और अन्य संगठनों ने इस निर्णय का विरोध करते हुए प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं। उनका कहना है कि राज्य सरकार हिंदू परंपराओं को दबाने की कोशिश कर रही है, जिसे किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
]]>“ममता बनर्जी जिंदाबाद”, “अभिषेक बनर्जी जिंदाबाद”, “दीदी के बुलावे पर बार-बार – कोच बिहार, कोच बिहार” जैसे नारे शहर की दीवारों पर उकेरे गए। इस अभियान का नेतृत्व कोच बिहार जिला तृणमूल कांग्रेस के अध्यक्ष और पूर्व सांसद पार्थ प्रतिम राय ने किया। उनके नेतृत्व में सैकड़ों कार्यकर्ता और समर्थक दीवार लेखन में सक्रिय रूप से शामिल हुए।
पार्थ प्रतिम राय ने इस अवसर पर कहा, “21 जुलाई केवल एक राजनीतिक सम्मेलन नहीं है, यह बंगालियों के आंदोलन और लोकतंत्र की रक्षा के लिए लड़ाई का प्रतीक है। 1993 में फोटो युक्त वोटर कार्ड की मांग को लेकर ममता बनर्जी के नेतृत्व में आंदोलन के दौरान 13 युवा कांग्रेस कार्यकर्ता शहीद हो गए थे। उनकी स्मृति में हम हर साल इस दिन को मनाते हैं। इस बार भी कोच बिहार से हजारों कार्यकर्ता कोलकाता के शहीद सम्मेलन में शामिल होंगे।”
उन्होंने आगे बताया, “दीवार लेखन के साथ हमारा प्रचार शुरू हो चुका है। आने वाले दिनों में बूथ, क्षेत्र और ब्लॉक स्तर पर पथसभाएं, जुलूस और जनसंपर्क अभियान चलाए जाएंगे। हमारा लक्ष्य शहीद दिवस के माध्यम से कार्यकर्ताओं में उत्साह जगाना और लोकतंत्र की रक्षा का संदेश जन-जन तक पहुंचाना है।”
पार्टी कार्यकर्ताओं में इस अभियान को लेकर जबरदस्त उत्साह देखा गया। शहर के विभिन्न इलाकों में तृणमूल का दीवार लेखन आम लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहा है। एक स्थानीय निवासी ने कहा, “इस तरह के प्रचार से पार्टी की संगठनात्मक ताकत झलकती है। 21 जुलाई शहीद दिवस हमारे लिए भावनाओं से भरा दिन है।”
1993 में 21 जुलाई को कोलकाता में महाकरण अभियान के दौरान पुलिस की गोलीबारी में 13 युवा कांग्रेस कार्यकर्ताओं की मौत हो गई थी। तृणमूल कांग्रेस के गठन के बाद से इस दिन को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। कोच बिहार जिला तृणमूल इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए पहले से ही व्यापक तैयारियां शुरू कर चुका है, जो आने वाले दिनों में और तेज होगी।
]]>अभिषेक बनर्जी ने बुधवार से संगठनात्मक बैठक शुरू की. 9 लोकसभा सीटों पर अभिषेक का खास फोकस. डायमंड हार्बर, दार्जिलिंग, कूच बिहार, मालदा नॉर्थ, मालदा साउथ, घाटल, बोलपुर, बीरभूम और झाड़ग्राम। इन उन्नीस लोकसभा चुनावों में से भाजपा ने चार सीटें जीतीं। तृणमूल4. और एक में कांग्रेस.
पिछले बुधवार को अभिषेक कौशली-वैथक ने डायमंड हार्बर सेंटर में अपना केंद्र शुरू किया। डायमंड हार्बर लोकसभा में 7 विधानसभा क्षेत्र हैं। इक्कीस में से सात केंद्रों पर तृणमूल को जीत मिली. बीजेपी खोखली है.
चौबीसवें वोट में क्या होगा? अभिषेक बनर्जी ने बुधवार को डायमंड हार्बर के 2 विधानसभा क्षेत्रों के साथ बैठक की. उस बैठक में उन्होंने अपने लोकसभा क्षेत्र की सभी सात विधानसभाओं में बढ़त बढ़ाने का कड़ा संदेश दिया था. जानना चाहते हैं कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव में विपक्ष को कई बूथों पर बढ़त क्यों मिली? अभिषेक ने निर्देश दिया कि उन बूथों पर अधिक समय बिताया जाये जहां पहले कम वोट पड़े थे. डायमंड हार्बर में जो किया गया है उसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए। विकास को एक उपकरण के रूप में किया जाना चाहिए।
डायमंड हार्बर के अलावा आठ अन्य विधानसभा क्षेत्रों पर अभिषेक की खास नजर है. इनमें दार्जिलिंग, कूचबिहार, झाड़ग्राम, मालदा उत्तर और मालदा दक्षिण की उन्नीस लोकसभा सीटें तृणमूल हार गयीं. इनमें दार्जिलिंग लोकसभा क्षेत्र की 7 सीटों में से 6 पर बीजेपी ने 20 वोटों से जीत हासिल की. जमीनी स्तर पर एक में. कूचबिहार की भी यही तस्वीर थी. बीजेपी छह. घास की जड़ एक है. अभिषेक बनर्जी इस फिल्म को बदलना चाहते हैं. वह सभी विधानसभा सीटों से नेतृत्व करना चाहते हैं.
]]>‘अमर बूटे आमी साथे’ कार्यक्रम में तृणमूल की महिला नेता और कार्यकर्ता घर-घर जाकर प्रचार करेंगी. प्रत्येक घर को एक विशेष किट दी जाएगी। इसमें लक्ष्मी भंडार की तस्वीरें-पोस्टर शामिल होंगे. और महिलाओं के लिए राज्य की योजनाओं की जानकारी होगी. विशेष स्टीकर भी दिये जायेंगे. इसके अलावा महिलाओं के साथ कई वर्कशॉप भी होंगी. चटाई बैठक पूरे प्रदेश में होगी. ‘सबाई बोलो, लक्ष्मी एलो’ के बैनर तले राज्य के विभिन्न हिस्सों में सार्वजनिक बैठकें और जुलूस आयोजित किए जाएंगे।
इन दोनों कार्यक्रमों को लागू करने के लिए तृणमूल ने चंद्रिमा भट्टाचार्य, माला रॉय, शशि पंजड को विशेष जिम्मेदारी दी है. इनका नेतृत्व स्थानीय महिला कार्यकर्ता करती हैं।
इस राज्य में कुल मतदाताओं की संख्या 7 करोड़ 59 लाख 19 हजार 891 है. महिला मतदाता 3 करोड़ 73 लाख 48 हजार 511। यानी करीब 49 फीसदी मतदाता महिलाएं हैं. इसलिए बीजेपी का लक्ष्य महिला वोट पर भी है. इसके लिए वे बार-बार संदेशखाली का इस्तेमाल कर रहे हैं. संदेशखाली की कार्यकर्ता महिला रेखा पात्रा को भी उन्होंने उम्मीदवार बनाया है. प्रधानमंत्री ने खुद रेखा को फोन किया.
इन सबके जवाब में तृणमूल की दोहरी रणनीति है. भाजपा को स्त्रीद्वेषी पार्टी के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। और राज्य में महिलाओं के लिए ममता बनर्जी की सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाओं को बढ़ावा देना। जैसे कन्याश्री, रूपाश्री, लक्ष्मी भंडारा। इनमें से इक्कीस विधानसभा वोटों और तेईस पंचायत वोटों में से लक्ष्मी भंडार ने अच्छा लाभांश दिया है। इन सभी परियोजनाओं के साथ, तृणमूल 2024 के अंत से पहले हर घर तक पहुंचना चाहती है। महिलाओं का समर्थन बरकरार रखने के लिए जमीनी स्तर की महिलाएं मैदान में उतर रही हैं.
]]>ত্রিপুরার পর এবার গোয়ার (goa) দিকে বিশেষ নজর দিয়েছে মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের (Mamata Banerjee) দল। কয়েকদিন আগেও মমতা এবং তাঁর ভাইপো তথা দলের সর্বভারতীয় সাধারণ সম্পাদক অভিষেক বন্দ্যোপাধ্যায় (Avishek Banerjee) দাবি করেছিলেন, তৃণমূলই গোয়ায় সরকার গড়বে। কিন্তু শুক্রবার কলকাতা পুরভোটের প্রচারের শেষে কালীঘাটে অভিষেকের গলায় অন্যরকম সুর শোনা গেল।
পুরভোটের প্রচার শেষে অভিষেক এদিন বলেন, গোয়ার নির্বাচনে তৃণমূল কংগ্রেস হয় সরকার গড়বে, নয় তারা প্রধান বিরোধীদল হবে। মাঝামাঝি কিছু হবে না। রাজনৈতিক মহল মনে করছে, গোয়ার হাওয়া কিছুটা হলেও টের পেয়েছেন অভিষেক। সেজন্যই তিনি আগে থাকতেই প্রধান বিরোধীদল হওয়ার দাবি করে রাখলেন।
যদিও অভিষেক এদিন ত্রিপুরার প্রসঙ্গ টেনে বলেছেন, তিন মাসের চেষ্টায় ত্রিপুরায় প্রধান বিরোধী দল হয়েছে তৃণমূল। শূন্য থেকে শুরু করে ২৪ শতাংশ ভোট পেয়েছে তাঁদের দল। ভারতের কোনও রাজনৈতিক দল তিন মাসে এই ফলাফল কল্পনাও করতে পারবে না। গোয়াতেও আমরা লড়াই করার চেষ্টা চালাচ্ছি। আসন্ন গোয়া বিধানসভা নির্বাচনে তৃণমূল কংগ্রেস হয় সরকার গঠন করবে, না হলে তারা প্রধান বিরোধী দল হিসেবে আত্মপ্রকাশ করবে।
অভিষেকের এদিনের বক্তব্যের কড়া সমালোচনা করেছে কংগ্রেস। এদিন কংগ্রেসের পক্ষ থেকে বলা হয়েছে, বিজেপির ভাড়া করা বাহিনী হয়ে তৃণমূল চেষ্টা করছে কংগ্রেসকে শেষ করার। আসলে তৃণমূল কংগ্রেস বিজেপিকে সহযোগিতা করতেই কাজ করছে। অভিষেকের কথাতেই আজ বিষয়টি আরও স্পষ্ট হয়ে গেল। আসলে তৃণমূল চায়, গোয়ায় বিজেপি সরকার গঠন করুক। অন্যদিকে তারা বিরোধী হয়ে বিজেপির মদতে লুটপাট চালাবে। বিরোধী ভোট ভাগ করতেই তৃণমূলের যত তৎপরতা।
উল্লেখ্য, ২০১৭ সালে গোয়া বিধানসভা নির্বাচনে একক বৃহত্তম দল হয়েছিল কংগ্রেস। কিন্তু তারপরেও তারা সরকার গঠন করতে পারেনি। তৃণমূল কংগ্রেস অবশ্য মনে করে, রাজনৈতিক দূরদর্শিতার অভাবের জন্যই কংগ্রেস গোয়ায় সরকার গড়তে পারেনি। গোয়া বিধানসভা নির্বাচনে সরকার গড়ার লক্ষ্যে সম্প্রতি মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়, অভিষেক বন্দ্যোপাধ্যায়-সহ তৃণমূলের একাধিক নেতা নিয়মিত ওই রাজ্য সফর করছেন। কিন্তু অভিষেক এদিন যে কথা বলেলেন তাতে পশ্চিম উপকূলের এই রাজ্যেও তৃণমূল কংগ্রেসের ভবিষ্যৎ অনিশ্চত বলে মনে করছে রাজনৈতিক মহল।
]]>আজকের এই বৈঠকে কিভাবে শাসক দল বিজেপির মোকাবিলা করা হবে তা নিয়ে রণকৌশল তৈরি করেন অভিষেক। এদিন এই তরুণ তৃণমূল নেতা দলীয় সাংসদদের (member of parliament) স্পষ্ট বার্তা দিয়েছেন আগামী দিনে সংসদের ভিতরে এবং বাইরে বিজেপির বিরুদ্ধে আরও বেশি আক্রমণাত্মক হতে হবে।
দ্বিতীয় যে বার্তাটি অভিষেক দিয়েছেন সেটা হল, কংগ্রেসের মুখের দিকে তাকিয়ে না থেকে তৃণমূল সাংসদরা যেন নিজেদের মত করেই বিজেপির বিরুদ্ধে লড়াই করেন। অভিষেক স্পষ্ট বুঝিয়ে দিয়েছেন, কংগ্রেস হল একটি পৃথক দল। সেই দলের রণকৌশল আলাদা। তাই তারা কী ভাবছে বা কী করছে সেটা কখনওই তৃণমূলের বিবেচনার বিষয় হতে পারে না। তৃণমূল একটি সম্পূর্ণ আলাদা রাজনৈতিক দল। তাদের আদর্শ ও চিন্তাভাবনা আলাদা। তারা নিজেদের মত করেই বিজেপির মোকাবিলা করবে। কোন দল কী করছে সে কথা দ্বিতীয়বার ভাববে না।
এই বৈঠকের আগে অভিষেক বন্দ্যোপাধ্যায় দিল্লিতে থাকা সব সংসদকেই এদিন উপস্থিত থাকার কথা বলেছিলেন। কিন্তু এ দিনের বৈঠকে দুই তারকা সাংসদ নুসরত জাহান ও মিমি চক্রবর্তী অনুপস্থিত ছিলেন। শোনা যাচ্ছে এবার দুই তারকা সাংসদকে কারণ দর্শানোর নোটিশ দিতে চলেছে দল। বৈঠকের মধ্যেই অভিষেক জানিয়ে দিয়েছেন, আজকের বৈঠকে যাঁরা অনুপস্থিত আছেন তাঁরা কেন থাকলেন না সে বিষয়ে সুস্পষ্ট ব্যাখ্যা দিতে হবে।
দলের দুই রাজ্যসভার সাংসদকে সাসপেন্ড করার সিদ্ধান্তের প্রতিবাদে গান্ধী মূর্তির পাদদেশে ধরনা দিচ্ছেন দুই তৃণমূল সাংসদ। মঙ্গলবার সেই ধরনায় সাংসদদের সঙ্গে যোগ দেন অভিষেক।
সম্প্রতি জাতীয় রাজনীতিতে কার্যত একাই লড়ছে তৃণমূল। কয়েকটি রাজ্যে অন্য ছোট আঞ্চলিক দলগুলিকে তৃণমূল জোট সঙ্গী হিসেবে পেতে চাইলেও কংগ্রেসকে ধর্তব্যের মধ্যে আনছে না। বরং কংগ্রেসকে ভেঙেই নিজেদের ঘর গোছাতে চাইছে তৃণমূল। তৃণমূলের এই রণকৌশল স্বাভাবিকভাবেই কংগ্রেসের উষ্মা বাড়িয়েছে। তাই আগামী দিনে কংগ্রেস ও তৃণমূল কংগ্রেসের সম্পর্কের রসায়ন কোথায় গিয়ে পৌঁছয় তা নিয়ে রাজনৈতিক মহলের কৌতূহল রয়েছে।
]]>উল্লেখ্য, এতদিন পর্যন্ত সিবিআইয়ের শীর্ষ কর্তাদের কার্যকালের মেয়াদ ছিল দুই বছর। সেই মেয়াদ তিন বছর বাড়িয়েছে নরেন্দ্র মোদী সরকার। কেন্দ্র এক অর্ডিন্যান্স জারি করে জানিয়েছে, প্রথম দুই বছরের মেয়াদ শেষ হওয়ার পর পরবর্তী ক্ষেত্রে এক বছর করে আরও তিন বছর মেয়াদ বাড়ানো যাবে। প্রথম থেকেই সরকারের এই অর্ডিন্যান্সের বিরোধিতা করেছিল প্রায় সবকটি বিরোধী দল।
এদিন ওই বিল আনার পর তৃণমূল কংগ্রেস সাংসদ সৌগত রায় বলেন, সুপ্রিম কোর্ট স্পষ্ট বলেছে সিবিআই হল খাঁচায় বন্দি তোতা। মোদী সরকারের এই অধ্যাদেশ সিবিআইকে আরও বেশি করে বন্দি করারই পরিকল্পনা। তাঁর দাবি, এই বিল গণতন্ত্র বিরোধী। নিজের লোককে সিবিআইয়ের মাথায় রেখে বিরোধীদের হেনস্থা করাই এই বিলের একমাত্র উদ্দেশ্য।
অন্যদিকে কংগ্রেস সাংসদ অধীর চৌধুরী বলেন, এই বিল থেকে এটা স্পষ্ট যে, এই মুহূর্তে সিবিআই ও ইডির ডিরেক্টর হওয়ার মতো কোনও উপযুক্ত আধিকারিককে এই দেশে খুঁজে পাচ্ছে না মোদী সরকার। কারও সঙ্গে কোনও রকম আলোচনা না করে সরকার নিজেদের ইচ্ছামত সবকিছু করছে। আসলে মোদী সরকার চায়, তাদের কথায় উঠব বসবে এমন এক ‘ইয়েস বস’কে সিবিআই, ইডির মতো গুরুত্বপূর্ণ বিভাগের মাথায় রাখতে।
তবে বিরোধীদের অভিযোগ উড়িয়ে দিয়েছে সরকার। সরকারের পাল্টা দাবি, ২০১৪ সালে তৎকালীন প্রধানমন্ত্রী মনমোহন সিংয়ের আমলেই সিবিআইকে খাঁচায় বন্দি তোতা বলা হয়েছিল। কিন্তু এখন আর সেই পরিস্থিতি নেই। সিবিআই ও অন্যান্য কেন্দ্রীয় সংস্থাগুলি স্বাধীনভাবে তাদের কাজ করে থাকে। তাই কংগ্রেস ও তৃণমূল কংগ্রেসের এই দাবি ঠিক নয়। তাছাড়া সিবিআই বা ইডির ডিরেক্টরের মেয়াদ সর্বোচ্চ পাঁচ বছর করা হয়েছে, তার বেশি নয়।
]]>পূর্ব নির্ধারিত কর্মসূচি অনুযায়ী বৃহস্পতিবার সংসদ চত্বরে (parliament premises) গান্ধী মূর্তির (Gandhi statue)৷ পাদদেশে সাসপেন্ড হওয়া ১২ জন সাংসদ ধরনায় বসেছিলেন। এদিন ওই সাংসদদের পাশে এসে বসেন রাহুল গান্ধী ও লোকসভায় কংগ্রেস দলনেতা অধীর চৌধুরী। একই সঙ্গে বিভিন্ন বিরোধী দলের প্রতিনিধিরাও ওই ধর্না মঞ্চে হাজির হন।
তৃণমূল কংগ্রেস আগেই ঘোষণা করেছিল, সাসপেনশনের নির্দেশ যতদিন না প্রত্যাহার হবে ততদিন তাদের দুই সাংসদ গান্ধী মূর্তির সামনে ধর্না দেবেন। কিন্তু বাস্তবে দেখা যায়, শুধু দুই তৃণমূল সাংসদ নয়, অপর ১০জন সাংসদও ধরনা দিচ্ছেন। যাদের মধ্যে ছয়জন কংগ্রেসের, দুজন শিবসেনার এবং সিপিএম সিপিআইএয়ের একজন করে সাংসদ রয়েছেন।
কিন্তু বৃহস্পতিবার সকালে রাজনৈতিক মহলকে কিছুটা চমকে দিয়ে ধরনা মঞ্চে এসে বসেন রাহুল গান্ধী। বুধবারই মুম্বই সফররত বাংলার মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় রাহুল তথা কংগ্রেসকে তীব্র কটাক্ষ করেছিলেন। মমতার দাবি, একমাত্র তৃণমূল কংগ্রেসই বিজেপির বিরুদ্ধে রাস্তায় নেমে আন্দোলন করছে। একই সঙ্গে নাম না করে রাহুলকে তীব্র কটাক্ষ করে তৃণমূল সুপ্রিমো বলেন, বছরের অর্ধেক দিন বিদেশে কাটালে বিজেপির বিরুদ্ধে লড়াই করা যায় না।
সোশ্যাল মিডিয়ায় নয়, লড়াইটা করতে হয় মাঠে নেমে, রাজনীতির ময়দানে। মমতার এহেন বাক্যবাণের পরেই যেভাবে রাহুলকে তৃণমূল সাংসদের পাশে এসে বসতে দেখা গিয়েছে তা অবশ্যই গুরুত্বপূর্ণ বলে মনে করছে রাজনৈতিক মহল। পাশাপাশি রাহুলের এই সিদ্ধান্তে এটাও প্রমাণ হয়ে গেল যে, বিরোধীদের মধ্যে যতই মতবিরোধ থাক না কেন, বিভিন্ন গুরুত্বপূর্ণ ইস্যুতে বিজেপির বিরুদ্ধে লড়াই করতে তারা একজোট হয়েই চলবে।
রাহুলের এদিনের সিদ্ধান্তে এক ঢিলে দুই পাখি মরেছে বলে রাজনৈতিক মহলের ধারণা। কারণ ঐক্যবদ্ধ বিরোধী জোটের ছবি তুলে ধরে রাহুল একদিকে যেমন বিজেপির উপর চাপ সৃষ্টি করেছেন, তেমনই তৃণমূলকেও এটা বুঝিয়ে দিয়েছেন যে কংগ্রেসকে ছাড়া কখনই বিরোধী মঞ্চ গড়ে তোলা সম্ভব নয়।
তবে বিরোধী সাংসদদের এই ধরনাকে খুব একটা আমল দিচ্ছেন না রাজ্যসভার চেয়ারম্যান বেঙ্কাইয়া নায়ডু। তিনি বলেছেন, ক্ষমা না চাওয়া পর্যন্ত ওই সাংসদদের সাসপেনশন কোনওভাবেই প্রত্যাহার করা হবে না। বরং বিরোধীদের এই আন্দোলনকে অগণতান্ত্রিক বলে উল্লেখ করেছেন নায়ডু।
]]>সোমবার বিকেলেই তৃণমূল নেত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় দিল্লি এসেছেন। তাঁর এবারের রাজধানী সফরে বেশ কিছু চমক থাকতে পারে এমন ইঙ্গিত আগেই মিলেছিল। মঙ্গলবার সকালে মুখ্যমন্ত্রীর সঙ্গে দেখা করেন বিশিষ্ট পরিচালক ও সুরকার জাভেদ আখতার এবং প্রাক্তন প্রধানমন্ত্রী অটলবিহারী বাজপেয়ীর উপদেষ্টা সুধীন্দ্র কুলকার্নি। চলতি রাজনৈতিক পরিস্থিতিতে তাঁদের এই সাক্ষাৎকারটি যে নিছকই সৌজন্যমূলক ছিল না তা বলাই বাহুল্য।
উল্লেখ্য, মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের হাত ধরে তৃণমূল কংগ্রেসের যোগ দেওয়ার পর কংগ্রেস ছেড়ে আসা নেতা কীর্তি আজাদ বলেন, দল তাঁকে যে দায়িত্ব দেবে তিনি তা পালন করার চেষ্টা করবেন। তৃণমূল কংগ্রেসের নেতৃত্বেই গোটা দেশ উন্নয়নের পথে হাঁটবে। একদিন গোটা দেশকে উন্নয়ন ও অগ্রগতির পথে চলার দিশা দেখাবেন দলনেত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়।

অন্যদিকে পবন ভার্মা একজন দক্ষ কূটনীতিক হিসেবে পরিচিত। এক সময় তিনি ভুটানে ভারতের রাষ্ট্রদূত ছিলেন। পরবর্তী ক্ষেত্রে তিনি বিহারের মুখ্যমন্ত্রী নীতীশ কুমারের উপদেষ্টাও হয়েছিলেন। তখন থেকেই পবনের সঙ্গে জেডিইউয়ের ঘনিষ্ঠতা। জেডিইউয়ের টিকিটে রাজ্যসভায় নির্বাচিত হয়েছিলেন এই দক্ষ কূটনীতিবিদ। একসময় জেডিইউ-এর সর্বভারতীয় সাধারণ সম্পাদক এমনকী, দলের মুখপাত্রের ভূমিকাও পালন করেছেন পবন।
মমতা এদিন নিজে পবনকে দলে স্বাগত জানান। গলায় পরিয়ে দেন তৃণমূলের উত্তরীয়। তৃণমূলে যোগদানের পর প্রাক্তন কূটনীতিবিদ বলেন, তিনি নিশ্চিত ২০২৪ সালের লোকসভা নির্বাচনের পর মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় দিল্লিতেই থাকবেন। মমতার নেতৃত্বে দেশ উন্নয়নের পথে হাঁটবে।
এদিন মমতার সঙ্গে দেখা করেন বিখ্যাত সুরকার ও পরিচালক জাভেদ আখতার। জাভেদ সরাসরি রাজনীতি না করলেও তিনি বিজেপি বিরোধী বলেই পরিচিত। এরইমধ্যে এদিন মমতার সঙ্গে দেখা করেন প্রাক্তন প্রধানমন্ত্রী অটলবিহারী বাজপেয়ী ও লালকৃষ্ণ আদবানীর অতিঘনিষ্ঠ বিজেপি নেতা সুধীন্দ্র কুলকার্নি। কুলকার্নির মত একজন দক্ষ ও সুপণ্ডিত ব্যক্তির সঙ্গে মমতার এই সাক্ষাৎকার দিল্লির রাজনীতিতে যথেষ্ট আলোড়ন তৈরি করেছে।
তবে, বিজেপি সাংসদ বরুণ গান্ধী তৃণমূলে যোগ দিতে পারেন বলে যে জল্পনা চলছিল এ দিন তার কোনও প্রমাণ মেলেনি। বরুণকে এদিন মমতা বা তৃণমূল নেতাদের আশপাশে কোথাও দেখা যায়নি। তবে আগামী দিনে বিজেপি এই সাংসদ কী পদক্ষেপ করতে চলেছেন তা নিয়ে রাজনৈতিক মহলে একটা কৌতুহল রয়েছে।
]]>এরই মধ্যে আগামী সপ্তাহে দিল্লি যাচ্ছেন তৃণমূল নেত্রী মমতা (Mamata Banerjee) বন্দ্যোপাধ্যায়। বিভিন্ন সূত্রে জানা গিয়েছে, মমতার এই দিল্লি সফরে থাকছে বড় মাপের এক চমক। দিল্লিতে (Delhi) মমতার উপস্থিতিতে তাঁর দলে যোগ দিতে পারেন বিজেপি সাংসদ তথা গান্ধী পরিবারের তরুণ নেতা বরুণ গান্ধী (Varun Gandhi)।

সম্প্রতি পিলভিটের সাংসদ বরুণ এবং তাঁর মা সুলতানপুরের সাংসদ মানেকার সঙ্গে বিজেপির সম্পর্কের যথেষ্ট অবনতি হয়েছে। যে কারণে সম্প্রতি বিজেপির জাতীয় কার্যনির্বাহী কমিটি থেকে বরুণ ও মানেকাকে (maneka) সরিয়ে দেওয়া হয়েছে। সম্প্রতি কৃষি আইনকে কেন্দ্র করে নরেন্দ্র মোদি ও বিজেপিকে তীব্র কটাক্ষ করেছেন বরুণ। লখিমপুর খেরির ঘটনাতেও তিনি দলের লাইনের বিরুদ্ধে গিয়েছেন। এই পরিস্থিতিতে নতুন এক রাজনৈতিক প্লাটফর্ম খুঁজছেন প্রয়াত প্রধানমন্ত্রী ইন্দিরা (Indira) গান্ধীর ছোট ছেলে সঞ্জয় গান্ধীর (sanjay gandhi) একমাত্র ছেলে বরুণ। তবে তাঁর পক্ষে কংগ্রেস শিবিরে যোগ দেওয়া কার্যত অসম্ভব। কাজেই প্রশ্ন উঠছে বরুণের সামনে বিকল্প কোন দল রয়েছে। এই প্রশ্নের উত্তরেই উঠে এসেছে তৃণমূল কংগ্রেসের নাম।
এই মুহূর্তে বিজেপি বিরোধী আন্দোলনের সবচেয়ে বড় মুখ হয়ে উঠেছেন তৃণমূল নেত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়। বিভিন্ন ইস্যুতে মোদি ও বিজেপিকে নিয়মিত আক্রমণ করে থাকেন মমতা। কয়েক মাস আগে পশ্চিমবঙ্গ বিধানসভা নির্বাচনে মোদি, অমিত শাহকে গোহারা হারিরেছেন তৃণমূল নেত্রী। মোদি, শাহ-সহ শীর্ষ বিজেপি নেতারা দিল্লি- কলকাতা ডেলি প্যাসেঞ্জারি করলেও তৃণমূলের গড়ে দাঁত ফোটাতে পারেননি।
সর্বভারতীয় ক্ষেত্রে একাধিক রাজনৈতিক দল ও নেতা ইতিমধ্যেই মমতার নেতৃত্বের প্রতি আস্থা রেখেছেন। বিরোধী নেতৃত্ব ইতিমধ্যেই মমতাকে ভবিষ্যতের প্রধানমন্ত্রী হিসেবে তুলে ধরার চেষ্টা চালাচ্ছেন। সে কারণেই বিজেপি বিরোধী এই মঞ্চে বা তৃণমূল কংগ্রেসে যোগ দেওয়ার কথা ভাবছেন বরুণ।
যদিও এ বিষয়ে তৃণমূলের পক্ষ থেকে নিশ্চিত করে কিছু জানানো হয়নি। বরুণও তৃণমূলে যোগ দেওয়া নিয়ে কোনও শব্দ খরচ করেননি। এ প্রসঙ্গে জানতে চাওয়া হলে তৃণমূল নেতৃত্ব শুধু মুচকি হেসেছেন। তাঁদের এই হাসির ইঙ্গিত কী সেটা অবশ্য ধরতে পারেনি রাজনৈতিক মহল। তবে বরুণের তৃণমূলে যোগ দেওয়ার খবরটি প্রকাশ্যে আসতেই জাতীয় রাজনীতিতে একটা ঢেউ উঠেছে। অনেকেই জানতে চেয়েছেন, পদ্ম ছেড়ে আরও এক নেতা কি এবার ঘাসফুল শিবিরে ভিড়ছেন। শেষ পর্যন্ত বরুণ যদি তৃণমূলে যোগ দেন তবে সেটা ভারতীয় রাজনীতিতে এক বড় চমক হতে চলেছে।
]]>তাৎপর্যপূর্ণ গত বিধানসভা ভোটে পূর্ব মেদিনীপুরের নন্দীগ্রামে বিজেপির কাছে পরাজিত হন মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়। সেই নন্দীগ্রামেও তৃণমূল কংগ্রেসের মধ্যে উল্লাস। দলনেত্রীর নন্দীগ্রামে পরাজয় হলেও বিধানসভা ভোটে বিপুলভাবে জয়ী হয় টিএমসি। তিনবার সরকার গড়ে। বিধায়ক না হয়েও মুখ্যমন্ত্রী পদে থাকেন মমতা। উপনির্বাচনে ভবানীপুর থেকে তিনি ফের জয়ী হয়ে প্রাক্তন বিধায়ক থেকে ফের বিধায়ক হতে চলেছেন।

নন্দীগ্রাম বিধানসভার টিএমসি কর্মী সমর্থকরা হাঁফ ছেড়েছেন। তাঁদের কেন্দ্রেই মুখ্যমন্ত্রীর পরাজয় ছিল গলায় কাঁটার মতো। বাম জমানায় যে নন্দীগ্রামে গুলি চলেছিল তার বিরুদ্ধে রাজনৈতিক আন্দোলনেই মমতার অগ্রগতি। সাথে ছিল হুগলি সিঙ্গুরে টাটা মোটরসের জন্য তৈরি হতে চলা কারখানার জমি নিয়ে বিতর্ক ও কৃষক বিক্ষোভ। সিঙ্গুর ও নন্দীগ্রাম দুই আন্দোলন মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়কে মুখ্যমন্ত্রীর কুর্সিতে পৌঁছে দিয়েছে।

পরপর দুবার ক্ষমতা ধরে রেখে গত নির্বাচনে ভোট পরীক্ষা দিতে নামেন মমতা। দলেদলে টিএমসি ত্যাগ ও বিজেপির উত্থান থমকে যায় ভোটের ফলে। তিনবার টানা সরকার গড়ে তৃণমূল। তবে বিজেপি হয় প্রধান বিরোধী দল। আর রাজ্য থেকে মুছে যায় বামেরা।
নন্দীগ্রামে মমতা হেরে যান। তবে মুখ্যমন্ত্রী থাকেন। স্বাধীনতার আগে যুক্তবঙ্গ থেকে স্বাধীনতা পরবর্তী পশ্চিমবঙ্গের আইনসভায় তিনিই এমন ব্যতিক্রমী মুখ্যমন্ত্রী। তবে ভবানীপুর কেন্দ্র তাঁকে ফের বিধানসভায় পাঠাচ্ছে।
]]>আরও পড়ুন শিক্ষক দিবস হোক বিদ্যাসাগর স্মরণে, চিঠি মমতার ঘরে
ফলে জিততে মরিয়া মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়। তাঁর ভোটপ্রচার দেখে ইতিমধ্যেই বোঝা গিয়েছে, প্রেস্টিজ ফাইটে কাউকে এক ইঞ্চি জমি ছাড়তে মরিয়া তিনি। ভবানীপুরের গেরুয়া শিবিরের প্রার্থী প্রিয়াঙ্কা টিবরেওয়াল। কলকাতা হাই কোর্টের অ্যাডভোকেট প্রিয়াঙ্কা টিবরেওয়াল। ২০১৪ সালে মোদী ঝড়ে খড়কুটোর মতো উড়ে গিয়েছিল বিরোধীরা। ক্ষমতায় এসেছিল এনডিএ সরকার (NDA)। সেবছরেরই আগস্টে বিজেপিতে যোগ দিয়েছিলেন তিনি। শুরুতেই দলের বেশ কয়েকটি গুরুত্বপূর্ণ কাজ পরিচালনা করেছেন। ছ’বছর পর, ২০২০ সালের আগস্টে তাঁকে পশ্চিমবঙ্গের ভারতীয় জনতা যুব মোর্চার (বিজেওয়াইএম) সহ-সভাপতি করা হয়।
এতকিছুরই পরেও প্রিয়াঙ্কা টিবরেওয়াল শুভেন্দু অধিকারী নন। সেরকমভাবেই সিপিআইএমের শ্রীজীব বিশ্বাসও মীনাক্ষী গোস্বামী নন। ফলে আপাতদৃষ্টিতে লড়াই যথেষ্টই সহজ তৃণমূল সুপ্রিমোর কাছে। কিন্তু সেই লড়াইয়ের কোমর বেঁধে নেমেছেন মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়। অন্তত তাঁর ভোটপ্রচার দেখে তাই মনে হচ্ছে রাজনৈতিক বিশেষজ্ঞদের। সেই প্রচারে গিয়েই এবার আলটপকা মন্তব্য করে বসলেন তিনি। মৃত বিজেপি নেতাকে তুলনা করলেন পঁচা কুকুরের সঙ্গে। যা তাঁর ‘গণতান্ত্রিক পদ্ধতিতে নির্বাচিত তৃতীয়বারের মুখ্যমন্ত্রী’ ইমেজের সঙ্গে যায় না বলেই মনে করছেন প্রত্যেকে।
একদিন আগেই মমতার বাড়ির সামনে মৃত বিজেপি কর্মী মানস সাহার দেহ নিয়ে বিক্ষোভ দেখিয়েছে রাজ্যের প্রধান বিরোধী দল ভারতীয় জনতা পার্টি। বিক্ষোভে ছিলেন স্বয়ং সুকান্ত মজুমদার, বিজেপির সদ্য নিযুক্ত রাজ্য সভাপতি। সেখানে পুলিশের সঙ্গে খন্ডযুদ্ধ বাধে তাদের। সেখানেই ঘটনা প্রসঙ্গেই মমতার মন্তব্য, ‘আমার বাড়ির সামনে ডেড বডি নিয়ে চলে যাচ্ছ। তোমার বাড়ির সামনে যদি আমি পাঠিয়ে দিই একটা কুকুরের ডেড বডি, ভাল হবে? এক সেকেন্ড লাগবে পচা কুকুর তোমার বাড়ির সামনে ফেলে আসব।’
প্রসঙ্গত, দক্ষিণ ২৪ পরগনার মগরাহাট বিধানসভা কেন্দ্রের পরাজিত বিজেপি প্রার্থী ধূর্জটি সাহা। এলাকায় মানস নামেই জনপ্রিয় ছিলেন তিনি। ভোট গণনার দিন গণনা কেন্দ্রের বাইরে তাঁকে বেধরক মারধর করা হয়েছিল। তৃণমূল বিধায়ক গিয়াউদ্দিন মোল্লার নেতৃত্বেই ধূর্জটি সাহাকে (মানস) মারধর করা হয় বলে অভিযোগ বিজেপির। সেই ভোট পরবর্তী হিংসার ঘটনাতেই মারা যান বিজেপি প্রার্থী।
রাজনৈতিক বিশ্লেষকরা বলছেন, গণতান্ত্রিক পদ্ধতিতেই রাজ্যের বিরোধী দলের আসন পেয়েছে বিজেপি। সেখানে সেই বিরোধী দলের একজন শুধু নয়, গণতন্ত্রের সবচেয়ে বড় উৎসবে অংশ নেওয়া একজনকে ‘খোদ মুখ্যমন্ত্রী’র পচা কুকুরের সঙ্গে তুলনা করা অত্যন্ত অন্যায়। ভবানীপুরের ভোটে এই ঘটনা হয়তো প্রভাব ফেলবে না, অন্যান্য মন্তব্যের মতোই হারিয়ে যাবে কয়েকদিনের মধ্যে। কিন্তু, রাজ্যের মুখ্যমন্ত্রী এই ভাষায় বিরোধী দলের ‘মৃত’ নেতাকে আক্রমণ করার ঘটনা অত্যন্ত নিন্দনীয় এবং অশোভন বলেই মনে করছেন তাঁরা।
]]>আরও পড়ুন: মমতাও হেরেছেন বলেই আবার ভোটে লড়ছেন, এন্টালিতে প্রিয়ঙ্কার হার প্রসঙ্গে তৃণমূলকে কটাক্ষ তথাগতর
ফলে জিততে মরিয়া মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়। তাঁর ভোটপ্রচার দেখে ইতিমধ্যেই বোঝা গিয়েছে, প্রেস্টিজ ফাইটে কাউকে এক ইঞ্চি জমি ছাড়তে মরিয়া তিনি। ভবানীপুরের গেরুয়া শিবিরের প্রার্থী প্রিয়াঙ্কা টিবরেওয়াল। কলকাতা হাই কোর্টের অ্যাডভোকেট প্রিয়াঙ্কা টিবরেওয়াল। ২০১৪ সালে মোদী ঝড়ে খড়কুটোর মতো উড়ে গিয়েছিল বিরোধীরা। ক্ষমতায় এসেছিল এনডিএ সরকার (NDA)। সেবছরেরই আগস্টে বিজেপিতে যোগ দিয়েছিলেন তিনি। শুরুতেই দলের বেশ কয়েকটি গুরুত্বপূর্ণ কাজ পরিচালনা করেছেন। ছ’বছর পর, ২০২০ সালের আগস্টে তাঁকে পশ্চিমবঙ্গের ভারতীয় জনতা যুব মোর্চার (বিজেওয়াইএম) সহ-সভাপতি করা হয়।

এতকিছুরই পরেও প্রিয়াঙ্কা টিবরেওয়াল শুভেন্দু অধিকারী নন। সেরকমভাবেই সিপিআইএমের শ্রীজীব বিশ্বাসও মীনাক্ষী গোস্বামী নন। ফলে আপাতদৃষ্টিতে লড়াই যথেষ্টই সহজ তৃণমূল সুপ্রিমোর কাছে। যদিও তাতে কোনভাবেই আত্মতুষ্টিতে ভুগতে নারাজ তৃণমূল নেত্রী থেকে শুরু করে দলের তৃণমূল স্তরের কর্মীরাও। ভবানীপুরে ভোটারদের মন জিততে মরিয়া প্রত্যেকে। ভবানীপুরের বেশ কিছু ওয়ার্ডে অবাঙালি ভোটারের সংখ্যা বেশী। চলতি বিধানসভা ভোটেও ওই ওয়ার্ডে এগিয়ে ছিল ভারতীয় জনতা পার্টি। ফলে ওই ওয়ার্ডে স্বভাবতই মনো্যোগ বাড়িয়েছে জোড়াফুল শিবির। সেখানেই পোস্টার পড়েছে মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের নামে। বাংলার বদলে হিন্দি ভাষা ব্যবহার করা হয়েছে ওই পোস্টারে, গোটা বিষয়টাই হিন্দিভাষী ভোটারদের কথা মাথায় রেখে।
গর্গকে নিয়ে ইয়ার্কি মেরো না, ও হারভার্ডে বাসন মেজেছে।
একা দাঁড়িয়ে ফুচকা বিক্রি করছে, এমন কোনো বিহারী ফুচকাওয়ালার তেঁতুল জলের হাঁড়ি এক ঘুষিতে ভেঙে দিতে পারে !
ওর পিছনে বড় বড় বাংলাদেশী মৌলবীরা আছে ! https://t.co/IQzfr5edrq— Tathagata Roy (@tathagata2) September 23, 2021
সেই ছবিই সোশ্যাল মিডিয়ায় দিয়ে বাংলাপক্ষের গর্গ চট্টোপাধ্যায়কে ওই হিন্দিতে লেখা পোস্টার খুলতে আহ্বান জানিয়েছিলেন অভিজিত বসাক নামের জনৈক নেটনাগরিক। তা শেয়ার করেই বাংলাপক্ষের প্রতিষ্টাতা-সদস্য গর্গ চট্টোপাধ্যায়কে ঠুঁকলেন বিজেপি নেতা তথাগত রায়। তিনি লিখেছেন, “গর্গকে নিয়ে ইয়ার্কি মেরো না, ও হারভার্ডে বাসন মেজেছে। একা দাঁড়িয়ে ফুচকা বিক্রি করছে, এমন কোনো বিহারী ফুচকাওয়ালার তেঁতুল জলের হাঁড়ি এক ঘুষিতে ভেঙে দিতে পারে! ওর পিছনে বড় বড় বাংলাদেশী মৌলবীরা আছে!”

বেশ কয়েকবছর ধরেই ‘পশ্চিমবঙ্গের বাঙালির অধিকার রক্ষায়’ পথে নামছে বাংলাপক্ষ। দিনকয়েক আগেই কলকাতা শহরের বিভিন্ন জায়গায় গিয়ে অবাঙালি ব্যবসায়ীদের ‘হুমকি’ দেওয়ার অভিযোগ উঠেছিল তাদের বিরুদ্ধে। মজা করে সোশ্যাল মিডিয়ায় অনেকেই এই সংগঠনকে শাসকদলের (পড়ুন তৃণমূল কংগ্রেস) বি টিম বলেও কটাক্ষ করে। আবার অন্যদিকে এই সংগঠনের বিক্ষোভের পরেই WBSEDCL (West Bengal State Electricity Distribution Company), পোস্টাল বিভাগের পরীক্ষায় বাধ্যতামূলক হয়েছে বাংলা। ইংরেজি না জানার অভিযোগে বরখাস্ত করা কর্মীদেরও পূনর্বহাল করা হয়েছে কাজে। ফলে তথাগত রায়ের মন্তব্য এবং তাতে গর্গ চ্যাটার্জী, বাংলাপক্ষকে টেনে আনায় দ্বিধাবিভক্ত সোশ্যাল মিডিয়া।
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আরও পড়ুন নন্দীগ্রামের পর এবার ভবানীপুর, মমতার মনোনয়ন বাতিলের দাবি বিজেপির
ভবানীপুরে উপনির্বাচনে মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের বিরুদ্ধে গেরুয়া শিবিরের প্রার্থী প্রিয়াঙ্কা টিবরেওয়াল। তাঁর নাম ঘোষণার পরেই আরেক চমক দিয়েছিল ভারতীয় জনতা পার্টির তরফ থেকে। পদ্মশিবিরের হয়ে তারকা প্রার্থী ঘোষণা করা হয় সদ্য ‘রাজনীতি’ থেকে অবসর নেওয়া বাবুল সুপ্রিয়র নাম।
Today, in the presence of National General Secretary @abhishekaitc and RS MP @derekobrienmp, former Union Minister and sitting MP @SuPriyoBabul joined the Trinamool family.
We take this opportunity to extend a very warm welcome to him! pic.twitter.com/6OEeEz5OGj
— All India Trinamool Congress (@AITCofficial) September 18, 2021
তারকা প্রার্থীদের তালিকায় নাম থাকায় বিজেপির শীর্ষ নেতাদের ধন্যবাদও জানান বাবুল। তারপরেই জানিয়ে দেন, তারকা প্রচারকের তালিকায় নাম থাকলেও ভবানীপুর বিধানসভা উপনির্বাচনে বিজেপির হয়ে প্রচার করবেন না। স্পষ্ট করে দেন, নিজের রাজনৈতিক সন্ন্যাসের সিদ্ধান্ত থেকে তিনি সরে আসেননি। এবং কোনওরকম রাজনৈতিক প্ল্যাটফর্মে আগামী দিনে তাঁকে দেখা যাবে না। তারপরেই উলটপুরাণ।
আরও পড়ুন মমতাও হেরেছেন বলেই আবার ভোটে লড়ছেন, এন্টালিতে প্রিয়ঙ্কার হার প্রসঙ্গে তৃণমূলকে কটাক্ষ তথাগতর
আরও পড়ুন মমতা-সরকারের বিরুদ্ধে বাংলাদেশিদের ভুয়ো ভারতীয় নাগরিকত্ব দেওয়ার অভিযোগ দিলীপের
বিজেপিতে যোগদানের পর থেকেই দলের হয়ে সক্রিয়ভাবে কাজ করেছেন বাবুল সুপ্রিয়। পরপর দু’বার আসানসোলের সাংসদও হয়েছেন। পেয়েছিলেন কেন্দ্রীয় প্রতিমন্ত্রীর দায়িত্ব। কিন্তু বিধানসভা নির্বাচনে টালিগঞ্জে অরূপ বিশ্বাসের কাছে পরাজিত হওয়া এবং মন্ত্রীত্ব খোয়ানোর পরেই রাজনীতি ত্যাগ করার সিদ্ধান্তের কথা জানান তিনি। শনিবাসরীয় দুপুরে এবং সর্বোপরি নরেন্দ্র দামোদরদাস মোদীর জন্মদিনের ঠিক পরের দিনই বাবুলের রাজ্যের শাসকদলে যো খোদগদান শুধু বিজেপি-র কাছেই মস্ত বড় চমক নয়। চমকে গিয়েছে খোদ তৃণমূলের কর্মীরাও। ভবানীপুর উপনির্বাচনের আগে এমন চমক পাওয়া যাবে, তা রাজ্যের শাসক দলের অনেকেই আশা করেননি।
]]>আরও পড়ুন কয়লাকাণ্ডে ইডির জেরা শেষে বিজেপিকে চ্যালেঞ্জ ছুড়লেন অভিষেক
নির্বাচন কমিশন উপনির্বাচনের দিন ঘোষণা হওয়ার পর ২৪ ঘণ্টা কাটতে না কাটতেই, ভবানীপুরসহ তিন কেন্দ্রের প্রার্থীর নাম ঘোষণা করেছে তৃণমূল কংগ্রেস। প্রত্যাশা মতোই এবার ভবানীপুরের তৃণমূল প্রার্থী মুখ্যমন্ত্রী। বিজেপির রুদ্রনীল ঘোষকে হারিয়ে দেওয়ার পরেও মুখ্যমন্ত্রীকে আসন ছেড়ে দিয়েছেন তৃণমূলের প্রবীন নেতা শোভনদেব চট্টোপাধ্যায়।
নির্বাচন কমিশন জানিয়েছে, ভোট গণনা হবে ৩ অক্টোবর। এবার মমতার বিরুদ্ধে কে হবেন ভবানীপুরের পদ্মশিবিরের প্রার্থী? রাজ্য রাজনীতিতে জোর জল্পনা এর উত্তর নিয়েই। ভবানীপুর কেন্দ্রে উপনির্বাচনে তৃণমূল প্রার্থী মমতা বন্দ্য়োপাধ্যায়ের বিরুদ্ধে কে লড়বেন, তা বাছতে রীতিমতো হিমশিম খেতে হচ্ছে গেরুয়া শিবিরকে। তবে তারই মধ্যে পর্যবেক্ষক নিয়ে সিদ্ধান্ত নিয়ে ফেলল বিজেপি।
পদ্মশিবিরের দুই সাংসদ অর্জুন সিং এবং জ্যোতির্ময় সিং মাহাতো এবং রাজ্যের সাধারণ সম্পাদক সঞ্জয় সিংকে পর্যবেক্ষকের দায়িত্ব দেওয়া হয়েছে। পাশাপাশি ভবানীপুর কেন্দ্রের আটটি ওয়ার্ড পর্যবেক্ষণে রাখবেন একজন করে বিজেপি বিধায়ক। তাঁদেই মাথায় থাকবেন দুই সাংসদ।
একই সময়ে নির্বাচন ও ভোট গণনা হবে রাজ্যের আরো দুই আসন সমশেরগঞ্জ এবং জঙ্গিপুরে। ভবানীপুর-সহ বাকি ৭টি বিধানসভা আসনে ভোট করানোর দাবিতে বার বার কমিশনের দ্বারস্থ হয়েছিল তৃণমূল কংগ্রেস। তাদের দাবি ছিল, রাজ্যো করোনা সংক্রমণ অনেকটাই কম। তাই ভোট করানো যেতে পারে।
তৃণমূল মোট ২১৩ টি সিট পেয়ে ক্ষমতায় এসেছিল বিধানসভা নির্বাচনে। তারপরেও ভারতীয় জনতা পার্টি থেকে প্রায় ছ’জন বিধায়ক যোগ দিয়েছেন রাজ্যের শাসকদলে। সেই সংখ্যাটাও আরও বাড়তে পারে। এবার উপনির্বাচনে সেই আসন সংখ্যা আরও বাড়ানোর সুযোগ এসেছে মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের দলের কাছে।
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লক্ষ্যমাত্রার থেকে মাত্র ১২৩ টি আসন কম পেয়ে রাজ্যের প্রধান বিরোধী দল হলেও বঙ্গে ভালো উত্থান হয়েছে গেরুয়া শিবিরেরও। ২০১৬ সালের বিধানসভা নির্বাচনের তুলনায় ৭৪ জন বিধায়ক, প্রায় ২৮% ভোট বেড়েছে তাদেরও। তারপরেই যেন ছন্দপতন বঙ্গ বিজেপিতে। ৭৭.. ৭৬.. ৭৫.. ৭৪.. ৭৩.. ৭২..গত কয়েকদিনে বিজেপির বিধায়ক সংখ্যা এভাবেই বদলেছে। বাঁকুড়ার বিষ্ণুপুরের বিধায়ক তন্ময় ঘোষের দল ছাড়ার চব্বিশ ঘন্টার মধ্যেই গেরুয়া শিবির ছেড়ে তৃণমূলে যোগ দিয়েছেন বাদগার বিধায়ক বিশ্বজিৎ দাস। পরপর দু’দিনে দুই বিধায়ক শাসক শিবিরে চলে যাওয়ায় তা দলের কাছে একটা ধাক্কা বলেই মনে করছে বঙ্গ বিজেপির একাংশ। দু’জনেই বিধানসভা নির্বাচনের আগে তৃণমূল ছেড়ে বিজেপি-তে গিয়েছিলেন।

ভোটের আগে নিয়মিত বঙ্গসফরে এসেছিলেন নরেন্দ্র মোদী, অমিত শাহ।
ধাক্কাই শুধু নয়, ভোটের আগে তৃণমূল থেকে বিজেপিতে আসা প্রত্যেক দলবদলুদের দলবদলের একটিই কারণ ছিল, ‘পার্টিতে দমবন্ধ লাগছে কিংবা কাজের পরিবেশ নেই।’ বিজেপি থেকে ফের তৃণমূলে ফিরেই একই কারণ দেখিয়েছেন প্রত্যেকেই। বাগদার বিধায়ক বিশ্বজিত জানিয়েছেন, ‘‘ভুল বোঝাবুঝির কারণেই তৃণমূল ছেড়েছিলাম। কিন্তু ভারতীয় জনতা পার্টিতে কাজের পরিবেশ নেই, দমবন্ধ হয়ে আসছিল। বিজেপি নেতৃত্ব বাংলার আবেগ ধরতে পারেনি।’’ বিশ্বজিতের মতোই বিধানসভা নির্বাচনের ফল প্রকাশের পর থেকেই একই কারণ দেখিয়ে শিবির বদলেছেন একাধিক নেতা-কর্মী। রাজনৈতিক বিশেষজ্ঞরা বলছেন, আগামী দিনে সংখ্যাটা আরও বাড়বে। গোটা ঘটনায় অস্বস্তিতে পরা বিজেপি নেতৃত্ব যতই ‘ক্ষমতার লোভ’ এর প্রসঙ্গকে সামনে আনুক, বিধানসভা নির্বাচনে দেশের সবচেয়ে ‘আধুনিক’ রাজনৈতিক দলের গেমপ্ল্যান নিয়েই প্রশ্ন উঠে গিয়েছে।
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বিধায়কদের দলত্যাগের পরেই প্রশ্ন উঠতে শুরু করেছে গেরুয়া শিবিরের অন্দরে। শাসক শিবির ভাঙিয়ে এনে বিধানসভা নির্বাচনে প্রার্থী করে কী লাভ হল? আদি বিজেপি কর্মীদের এই প্রশ্নের মুখেই এখন বিজেপির শীর্ষ নেতৃত্ব। রাজ্য বিজেপির মুখপাত্র শমীক ভট্টাচার্য জানিয়েছেন, দল ছেড়ে যারা চলে যাচ্ছেন তাঁদের বিরুদ্ধে ব্যবস্থা নেওয়া হবে। ইতিমধ্যেই দুই দলত্যাগীকে শুভেন্দু অধিকারী আইনি নোটিস পাঠিয়েও দিয়েছেন। কিন্তু তাতে আদৌ কোনো লাভ হবে ? দেওয়াল লিখন কিন্তু বলছে অন্য কথা, ‘বঙ্গে ক্রমশ ব্যাকফুটে বিজেপি।’
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আজ থেকে রাজ্য জুড়ে ‘খেলা হবে’ দিবস পালন করছে তৃণমূল। গত বিধানসভা নির্বাচন থেকেই এই স্লোগানে ঝাঁপিয়েছে তৃণমূল কংগ্রেস। তারপরেই রাজ্যে নির্বাচনে জিতে তৃতীয়বারের জন্য ক্ষমতায় এসেছে মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের সরকার। নির্বাচনের জেতার পরেই অন্যান্য রাজ্যের দিকে নজর দিয়েছে জোড়াফুল নেতৃত্ব। সেই লক্ষ্যেই পড়শি রাজ্য ত্রিপুরায় গিয়ে আক্রান্ত হয়েছে তৃণমূল কংগ্রেসের রাজ্য নেতৃত্ব।
চলতি সপ্তাহের রবিবার ফের ত্রিপুরায় আক্রান্ত হন তৃণমূল নেতৃত্ব। দুই মহিলা সাংসদের গাড়ি ঘিরে ব্যাপক ভাঙচুর চলে বলে অভিযোগ। এমনকি সাংসদ অপরূপা পোদ্দারের ব্যাগ ছুড়ে ফেলা দেওয়া হয়। সাংবাদিক বৈঠক এই ঘটনার নিন্দা করার পাশাপাশি ত্রিপুরার রাজ্যপাল, মানবাধিকার কমিশন ও মহিলা কমিশনের ভূমিকা নিয়েও প্রশ্ন তুলেছে রাজ্যের শাসক দল।
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প্রসঙ্গত, ত্রিপুরায় প্রশান্ত কিশোরের আইপ্যাকের টিমকে আটকে রাখার নিয়ে শুরু হয় বিরোধ। কয়েকদিন আগে ত্রিপুরায় দলীয় কর্মসূচিতে যোগ দিতে গিয়ে আক্রান্ত হন তৃণমূল কংগ্রেসের যুব নেতা দেবাংশু ভট্টাচার্য, সুদীপ রাহা এবং জয়া দত্তরা। তারপর অভিষেক বন্দ্যোপাধ্যায় ত্রিপুরায় পৌঁছালে তাঁর ওপরেও হামলার অভিযোগ ওঠে স্থানীয় বিজেপি শিবিরের বিরুদ্ধে।
বারবার এই ঘটনায় বিপ্লব দেবের সরকারের দিকে আঙুল তুলছে রাজ্য তৃণমূল নেতৃত্ব। সেই প্রসঙ্গেই দিলীপ ঘোষ বলেন, “এই ঘটনা নিয়ে খুব কান্নাকাটি করছে ওরা। ত্রিপুরায় বাচ্চা বাচ্চা ছেলেদের নিয়ে গিয়েছে। তাঁদের কেন নিয়ে যায়? কেউ বলছে সুইসাইড করব, কেউ বলছে রাস্তায় শুয়ে থাকবে- দুটো ঢিল মেরেছে আর তাতেই সব বিপ্লব শেষ!”
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