बांगलादेश में हाल ही में एक गंभीर घटना ने देश के धार्मिक माहौल को और भी तनावपूर्ण बना दिया है। 26 नवंबर 2024 को चटगांव में हुए एक भयंकर विवाद में अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ (ISKCON) के अनुयायियों पर आरोप है कि उन्होंने सरकारी अभियोजक को मौत के घाट उतार दिया। यह घटना तब घटी जब चिन्नमय कृष्ण प्रभु के खिलाफ राज्यद्रोह मामले में उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी। इसके बाद, इस्कॉन के अनुयायी उग्र हो गए और सरकारी अभियोजक सैफुल इस्लाम अलीफ को मार डाला। इस घटना के बाद, बांगलादेश में इस्कॉन को प्रतिबंधित करने की मांग तेज हो गई है, और चटगांव में साम्प्रदायिक संघर्ष का खतरा पैदा हो गया है।
इस्कॉन के अनुयायी, विशेष रूप से चिन्नमय कृष्ण प्रभु के समर्थक, उनके खिलाफ लगे आरोपों को गलत मानते हैं और उनकी रिहाई की मांग कर रहे हैं। इस बीच, सोशल मीडिया पर इस्कॉन के सशस्त्र सदस्यों की तस्वीरें भी वायरल हो रही हैं, जिससे स्थिति और अधिक तनावपूर्ण हो गई है। इस घटना के बाद, बांगलादेश में धार्मिक हिंसा के बढ़ने की आशंका जताई जा रही है।
बांगलादेश में इस्कॉन के इतिहास और भूमिका:
इस्कॉन (International Society for Krishna Consciousness) की स्थापना 1966 में अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में आचार्य अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद द्वारा की गई थी। यह एक वैष्णव संगठन है, जिसका मुख्य उद्देश्य श्री कृष्ण के ज्ञान और भक्ति का प्रचार करना है। इस्कॉन का कार्यक्षेत्र वैश्विक स्तर पर फैला हुआ है, और यह धार्मिक और सामाजिक कार्यों के लिए प्रसिद्ध है। खासतौर पर “फूड फॉर लाइफ” (Food for Life) कार्यक्रम के तहत इस्कॉन ने गरीब और जरूरतमंदों को मुफ्त भोजन प्रदान करने के कार्य में बहुत योगदान दिया है, जो दुनियाभर में सराहा जाता है।
बांगलादेश में इस्कॉन की शाखा 1970 के आसपास पाकिस्तान के समय में खोली गई थी, जब यह क्षेत्र पूर्व पाकिस्तान था। इसके बाद, बांगलादेश के स्वतंत्रता संग्राम के बाद देश में इस्कॉन ने अपनी शाखाएं स्थापित करना शुरू कर दिया। बांगलादेश के प्रमुख शहरों जैसे ढाका और चटगांव में इस्कॉन की शाखाएं बहुत प्रसिद्ध हैं। यहां तक कि मुस्लिम बहुल देश में भी इस्कॉन की लोकप्रियता में वृद्धि हुई है, और बांगलादेश में हिंदू समुदाय के बीच इसने तेजी से अपना पैर पसार लिया है।
इस्कॉन पर आरोप और विवाद:
हालांकि, इस्कॉन ने बांगलादेश में अपनी धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों के चलते कई सराहनाएँ प्राप्त की हैं, लेकिन इस संगठन पर समय-समय पर कई आरोप भी लगे हैं। इसके अनुयायी अक्सर इस्कॉन के खिलाफ राजनीतिक आरोपों के निशाने पर रहते हैं। इस्कॉन पर कई बार अपने विदेशी शाखाओं के साथ गुप्त रूप से संबंध बनाने और बांगलादेश में साम्प्रदायिक हिंसा फैलाने के आरोप भी लगाए गए हैं, हालांकि इस संगठन ने इन आरोपों का हमेशा खंडन किया है।
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस्कॉन के खिलाफ आरोप है कि यह संगठन भारत और अमेरिका में अपने अनौपचारिक नेटवर्क का इस्तेमाल करके बांगलादेश में धार्मिक तनाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। इस संगठन की गतिविधियों को लेकर विवाद तब और बढ़ गया जब कुछ इस्कॉन अनुयायियों ने सोशल मीडिया पर साम्प्रदायिक रूप से उत्तेजक सामग्री साझा की, जो धार्मिक हिंसा को भड़काने का कारण बन सकती थी।
बांगलादेश में इस्कॉन की स्थिति:
बांगलादेश में इस्कॉन की स्थिति में लगातार उतार-चढ़ाव आया है। मुस्लिम बहुल इस देश में हिंदू धर्म के अनुयायी न केवल धार्मिक रूप से कमजोर हैं, बल्कि उन्हें अक्सर राजनीतिक और सामाजिक उत्पीड़न का सामना भी करना पड़ता है। पिछले कुछ वर्षों में बांगलादेश में हिंदू-मुस्लिम तनाव में वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप कई साम्प्रदायिक झड़पें भी हुई हैं। इन घटनाओं ने बांगलादेश के हिंदू समुदाय के खिलाफ घृणा और असहमति को बढ़ावा दिया है। ऐसे माहौल में, इस्कॉन पर किए गए आरोप और इस संगठन की गतिविधियों पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
इस्कॉन पर कई बार आर्थिक अनियमितताओं और नेतृत्व से जुड़े विवादों के आरोप भी लगे हैं। इसके बावजूद, यह संगठन बांगलादेश में अपनी धार्मिक और सामाजिक सेवाओं के लिए कई स्थानों पर लोकप्रिय बना हुआ है। हालाँकि, अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या बांगलादेश सरकार इस संगठन पर प्रतिबंध लगाएगी और इसे निषिद्ध कर देगी?
बांगलादेश में इस्कॉन की शाखाओं पर बढ़ते आरोप और विवाद के बावजूद, इस संगठन ने हमेशा अपनी धार्मिक कार्यों में निष्कलंक रहने का दावा किया है। हालांकि, हाल की घटनाओं ने बांगलादेश में इस्कॉन की स्थिति पर सवाल खड़े कर दिए हैं। बांगलादेश में बढ़ते साम्प्रदायिक तनाव और धार्मिक विवादों के बीच इस्कॉन पर प्रतिबंध लगाने की मांग को लेकर स्थिति और भी जटिल हो सकती है। यह देखना होगा कि बांगलादेश सरकार इस मामले में क्या कदम उठाती है और क्या इस्कॉन को निषिद्ध किया जाएगा या नहीं।
इस्कॉन पर बढ़ती निगरानी और बांगलादेश में इसकी भविष्यवाणी इस बात पर निर्भर करेगी कि सरकार क्या निर्णय लेती है, और देश के अंदर साम्प्रदायिक तनाव के बीच इसे कैसे संभालती है।