मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने चेंबूर कॉलेज द्वारा छात्राओं के परिसर में बुर्का, हिजाब या नकाब पहनने पर लगाए गए प्रतिबंध को बरकरार रखा। जस्टिस ए एस चंदुरकर और राजेश पाटिल की बेंच ने मामले में सुनवाई की। कोर्ट ने कहा, “कॉलेज प्रशासन द्वारा ड्रेस कोड लागू करने के पीछे साफ उद्देश्य है। इरादा यह है कि किसी छात्र का धर्म उजागर नहीं होना चाहिए। यह छात्रों के हित में है।”
एन जी आचार्य और डी के मराठे कॉलेज के 9 छात्रों ने हिजाब पर लगाए गए बैन के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका लगाई। इसमें हिजाब पर लगाए गए मनमाना, भेदभावपूर्ण और संविधान से मिले मौलिक अधिकारों व धर्म का उल्लंघन बताया गया था। कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया। इस दौरान कर्नाटक हाईकोर्ट के उस फैसले का हवाला दिया गया जिसमें कहा गया था कि हिजाब या नकाब पहनना इस्लाम को मानने वाली लड़कियों के लिए जरूरी नहीं है।
याचिका में कहा गया था कि कॉलेज द्वारा लागू किए गए ड्रेस कोड से छात्रों की पसंद और निजता के अधिकार प्रभावित होते हैं। हिजाब और नकाब पहनना मुसलमान महिलाओं के लिए अनिवार्य धार्मिक प्रथा है। इसपर कॉलेज की ओर से पेश हुए सीनियर वकील अनिल अंतुरकर ने इसी तरह के एक मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले का हवाला दिया। कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा था कि हिजाब या नकाब पहनना इस्लाम मानने वाली लड़कियों के लिए अनिवार्य प्रथा नहीं है।
याचिका पर सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाईकोर्ट की पीठ ने कहा, “ड्रेस कोड छात्रों के बीच एकरूपता लाने के लिए लागू किया गया है, जिससे पता न चले कि कौन किस धर्म से है। अनुशासन बनाए रखने का कॉलेज का अधिकार एक शैक्षणिक संस्थान की स्थापना और प्रशासन के मान्यता प्राप्त मौलिक अधिकार से निकलता है। कॉलेज के निर्देश जाति, पंथ, धर्म या भाषा से परे सभी छात्रों पर लागू होते हैं।”